लगता है जैसे कहानी के प्रारंभ में ही बड़े सांकेतिक ढंग से प्रेमचंद इशारा कर रहे हैं और भाव का अँधकार में लय हो जाना मानो पूँजीवादी व्यवस्था का ही प्रगाढ़ होता हुआ अंधेरा है जो सारे मानवीय मूल्यों, सद्भाव और आत्मीयता को रौंदता हुआ निर्मम भाव से बढ़ता जा रहा है।
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लगता है जैसे कहानी के प्रारंभ में ही बड़े सांकेतिक ढंग से प्रेमचंद इशारा कर रहे हैं और भाव का अँधकार में लय हो जाना मानो पूँजीवादी व्यवस्था का ही प्रगाढ़ होता हुआ अंधेरा है जो सारे मानवीय मूल्यों, सद्भाव और आत्मीयता को रौंदता हुआ निर्मम भाव से बढ़ता जा रहा है।
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कहने के लिए यह लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए चलाया जा रहा आंदोलन है, लेकिन किसी एक सवाल या मुद्दे पर किसी राजनैतिक दल को वोट नहीं देने की अपील ही अलोकतांत्रिक है और इससे साफ संकेत मिलते हैं कि मामला देश में भ्रष्टाचार समाप्त करने का नहीं, बल्कि सीधे तौर पर एक नए सांकेतिक ढंग से हमारी राजनीति को संचालित करने का है।
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कहने के लिए यह लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए चलाया जा रहा आंदोलन है, लेकिन किसी एक सवाल या मुद्दे पर किसी राजनैतिक दल को वोट नहीं देने की अपील ही अलोकतांत्रिक है और इससे साफ संकेत मिलते हैं कि मामला देश में भ्रष् टाचार समाप् त करने का नहीं, बल्कि सीधे तौर पर एक नए सांकेतिक ढंग से हमारी राजनीति को संचालित करने का है।