पाणिनीय व्याकरण सांप्रत या प्रचलित संस्कृत की जननी माना जाता है, और यहीं से मध्यकालीन संस्कृत साहित्य सर्जन की यात्रा आरंभ हुई दिखती है ।
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पाणिनीय व्याकरण सांप्रत या प्रचलित संस्कृत की जननी माना जाता है, और यहीं से मध्यकालीन संस्कृत साहित्य सर्जन की यात्रा आरंभ हुई दिखती है ।
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दसवीं एवं बारहवीं की परीक्षाओंमें नकल होती है साथ ही ऐसा ध्यानमें आया है कि सांप्रत कालमें प्रत्यक्ष विधिकी परीक्षामें भी ‘ नकल ' होती है ।
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मध्यकालीन समय में सहस्र वर्षों की गुलामी और पराजित मनोवृत्ति ने, और सांप्रत समय में अर्थप्राधान्य ने संस्कृत की गरिमा को नष्ट:प्राय करने का प्रयत्न किया है ।
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मध्यकालीन समय में सहस्र वर्षों की गुलामी और पराजित मनोवृत्ति ने, और सांप्रत समय में अर्थप्राधान्य ने संस्कृत की गरिमा को नष्ट:प्राय करने का प्रयत्न किया है ।
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मध्यकालीन समय में सहस्र वर्षों की गुलामी और पराजित मनोवृत्ति ने, और सांप्रत समय में अर्थप्राधान्य ने संस्कृत की गरिमा को नष्ट: प्राय करने का प्रयत्न किया है ।
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आईये सीखें संस्कृतनिष्ठ हिन्दी! सांप्रत कालमें यह देखनेमें आया है कि हम हिन्दी बोलते या लिखते समय नित्य ही उर्दू एवं अन्य विदेशी भाषाओंसे उद्धृत शब्दोंका प्रयोग करते रहते हैं।
18.
परिणामतः सांप्रत शालाएँ polished, तर्कवादी, छीछले, महत्त्वाकांक्षी और भोगवादी बालक पैदा करनेकी स्पर्धात्मक फेक्टरीयाँ बन गयी है, क्यों कि शिक्षण सरकार के हाथ से अब स्पर्धात्मक मूडीवादीयों के हाथ में चला गया है ।
19.
क्या साहित्य सांप्रत जन-मानस का प्रतिबिंब नहीं? प्राचीन मानव सभ्यताओं के अभ्यास से यह ज़रुर महसुस होता है कि मानव-विकास का हर उत्तर-कांड उसके पूर्व-कांड से श्रेष्ठ हो ऐसा ज़रुरी नहीं; अर्थात् वैदिक काल की कुछ एक बातें अर्वाचीन युग को सर्वथा मार्गदर्शक हो सकती है, और उसे सर्वांगी मानव उत्थान के अभियान में प्रेरक बन सकती है ।
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क्या साहित्य सांप्रत जन-मानस का प्रतिबिंब नहीं? प्राचीन मानव सभ्यताओं के अभ्यास से यह ज़रुर महसुस होता है कि मानव-विकास का हर उत्तर-कांड उसके पूर्व-कांड से श्रेष्ठ हो ऐसा ज़रुरी नहीं ; अर्थात् वैदिक काल की कुछ एक बातें अर्वाचीन युग को सर्वथा मार्गदर्शक हो सकती है, और उसे सर्वांगी मानव उत्थान के अभियान में प्रेरक बन सकती है ।