भारत वर्ष में संयुक्त और नाभिकीय घराना तथा संयुक्त परिवार के सांस्कृतिक प्रतिमान साथ-साथ स्थित रहें हैं, अब परिवार की संरचना तथा संयुक्तता की भावना की मात्रा में परिवर्तन आ रहा है।
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किसी भी दूसरी जीवन शैली का अंधानुकरण ठीक नहीं है क्योंकि निश्चित रूप उनके सांस्कृतिक प्रतिमान हमारे सांस्कृतिक प्रतिमान नहीं हो सकते और इसी कारण हमारा फैशन और उनका फैशन अलग-अलग ही होगा, होना भी चाहिए।
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किसी भी दूसरी जीवन शैली का अंधानुकरण ठीक नहीं है क्योंकि निश्चित रूप उनके सांस्कृतिक प्रतिमान हमारे सांस्कृतिक प्रतिमान नहीं हो सकते और इसी कारण हमारा फैशन और उनका फैशन अलग-अलग ही होगा, होना भी चाहिए।
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जो कल था वह आज नहीं है, इसलिए मनोवैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि सांस्कृतिक प्रतिमान के लिए रूप में फैशन एक प्रकार का ऐसा सामाजिक संस्कार है जिसके संबंध में आशा की जाती है कि लोग उसका निर्वाह करेंगे।
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ये सांस्कृतिक प्रतिमान आत्मिक संस्कृति के अभिलक्षण होते हैं जिसे व्याख्यायित करते हुए बोरिस क्लूयेव ने लिखा है “आत्मिक संस्कृति अपने में किसी भी मानव समष्टि की सामूहिक स्मृति में अस्तित्वमान उस सूचना को द्योतित करती है जो पीढ़ी दर पीढ़ी वर्णन और प्रदर्शन द्वारा प्रेषित होती है और आचरण के कुछ रूपों में निर्धारित होती है।
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ये सांस्कृतिक प्रतिमान आत्मिक संस्कृति के अभिलक्षण होते हैं जिसे व्याख्यायित करते हुए बोरिस क्लूयेव ने लिखा है ‘‘आत्मिक संस्कृति अपने में किसी भी मानव समष्टि की सामूहिक स्मृति में अस्तित्वमान उस सूचना को द्योतित करती है जो पीढ़ी दर पीढ़ी वर्णन और प्रदर्शन द्वारा प्रेषित होती है और आचरण के कुछ रूपों में निर्धरित होती है।
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चूंकि सारे धार्मिक प्रतीक, सांस्कृतिक प्रतिमान और उनकी प्रणालियां प्रकृति के सन्निकट तथा उसी से उद्भूत थीं, इसलिए प्रकृति के संरक्षक के रूप में प्रकल्पित ईश्वर को बीच में लाने का कारण कदाचित जीवन में प्राकृतिक शक्तियों की पैठ और उनकी शक्तियों का वास्ता देना भी था, ताकि खुद को उनके प्रति उत्तरदायी मानता हुआ मनुष्य इनके तथा अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति पूरी तरह श्रद्धावनत एवं निष्ठावान बना रहे.