उसके बाद जब ‘ साहित्य ' शिल्पी ' में मेरा साक्षात्कार (साक्षात्कर्ता-अमित चैधरी) प्रकाशित हुआ, कुछ लोगों ने तब भी प्रत्यक्ष और परोक्षरूप से अपना विरोध दर्ज किया.
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उनका कहना था कि जो जानकारी किताबों, पत्रिकाओं, इंटरनेट पर मिल सकती है साक्षात्कर्ता को पहले उसे देखकर आना चाहिये ताकि बाकी समय में दूसरे महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर समय का उपयोग हो सके।
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दुर्भाग्य की बात यह है कि आज न तो उक्त साक्षात्कर्ता जीवित हैं और न ही उक्त महान साहित्यकार; आरोप सिद्ध कैसे हो? एक इसलिए चुप रहा कि बिना श्रम के ही नाम छप गया, दूसरा इसलिए कि मन की कुण्ठा निकल गई।
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दुर्भाग्य की बात यह है कि आज न तो उक्त साक्षात्कर्ता जीवित हैं और न ही उक्त महान साहित्यकार ; आरोप सिद्ध कैसे हो? एक इसलिए चुप रहा कि बिना श्रम के ही नाम छप गया, दूसरा इसलिए कि मन की कुण्ठा निकल गई।
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जब एक साक्षात्कर्ता ने मुझे बताया कि संसद पर हमले में गिलानी की क्या भूमिका है, तो मैंने भी ऐसे ही कह दिया कि गिलानी निर्दोष हैं, ठीक इसी वक्त एसीपी राजबीर सिंह अपनी घूमती हुई कुर्सी से उठे, मेरे ऊपर चिल्लाते हुए उन्होंने कहा कि मुझे पहले ही हिदायत दी गई थी कि मीडिया के सामने गिलानी के बारे में कुछ नहीं बोलना है।