इनकी भाषा सानुप्रास, शिष्ट और परिमार्जित है और उसमें ओज भी पूरा है।
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इनकी भाषा सानुप्रास, शिष्ट और परिमार्जित है और उसमें ओज भी पूरा है।
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अपनी कवितओं के बीच बीच में सानुप्रास कोमल पदावली का व्यवहार उन्होंने किया है, जैसे, सुरम्यरूपे, रसराशिरंजिते, विचित्र वर्णाभरणे!
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वस्तुवर्णन या दृश्यवर्णन में विषयानुकूल मधुर या कठोर वर्णवाले संस्कृत शब्दों की योजनाओं की, जो प्राय: समस्त और सानुप्रास होती हैं, चाल सी चली आई है।
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सानुप्रास कविता जैसा संगीत है, छंद और भाषा में लयप्रवाह है, फिर भी वर्णिक छंद के कारण यत्रतत्र भाषा हिंदी की पष्टि से कृत्रिम हो गई है, जकड़ सी गई है।
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अतुकांत होते हुए भी इसके पदप्रवाह में प्राय: सानुप्रास कविता जैसा संगीत है, छंद और भाषा में लयप्रवाह है, फिर भी वर्णिक छंद के कारण यत्रतत्र भाषा हिंदी की पष्टि से कृत्रिम हो गई है, जकड़ सी गई है।
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यद्यपि मुंशी इंशाउल्ला खाँ ने ' हिंदवी छुट किसी बोली का पुट न रहे' के अपने कथनानुसार हिंदी के अतिरिक्त किसी भाषा का पुट न रखने का निश्चय किया था, फिर भी अपने लेखनकौशल के प्रदर्शन की धुन में चुलबुली भाषा में उर्दू के ढंग का वाक्यविन्यास रखने और सानुप्रास विराम की छटा दिखाने के लोभ का वे त्याग न कर सके।