तुम कांतिप्रसाद से साफ-साफ कह देना, दुल्हन के साथ हम कुछ नहीं लेंगे जो है, उसे संभाल कर अपने पास रखे, समझे? आंखें फैलाकर विवेकानाथ मुझे गौर से देखने लगे, तुम्हारी तबीयत ठीक तो है? हां, मैं ठीक हूं।
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“ लेकिन मेरे ख्याल से तो लौटाचन्द जी को साफ-साफ कह देना चाहिए था अपने साले साहब को कि वो अपनी लँगोटी खुद खरीदें ”... “ किस मुँह से मना करते लौटाचन्द जी उसे? ”... ” वो खुद कई बार उसी की लँगोटी माँग के ले जा चुके थे...
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से क्या मतलब? … मैँ कोई लड़की तो नहीं ” … “ जी! … लेकिन मैँ तो ये कह रहा था कि अगर आप भाभी जी को भी साथ ले लें तो बड़ा मज़ा आएगा ” … “ किसे? ” … “ म्मुझे …. आपको … हम सभी को ” मैँ हकलाता हुआ बोला … “ तो फिर इतना घुमा-फिरा के कहने की क्या ज़रूरत थी … अपना साफ-साफ कह देना था कि हम मियाँ-बीवी … दोनों को चलना है ” … “ जी ” … “ ओ.क े! …