यमुना जी, साभिवादन! ………… मन वेदना से भींग गया, सचमुच आप की सहेली की कथा बड़ी ही करुण और ह्रदय-विदारक है, मेरी शुभकामना है कि आप की सहेली पूर्ण रूप से अपने पूर्व की मनोदशा में शीघ्रता से लौट सकें! पुनश्च!!
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मान्या यमुना जी, साभिवादन! …….. मधुमालती का दर्शन प्रातः उठते ही अपने गृह-द्वार पर रोज करता हूँ! आप का यह आलेख यादों के उसपार ले जाकर अभिभूत कर दिया | आप के लेखन में कहीं ताज़गी तो कहीं अतीत के रागात्मक अनुवृत्तियों का उत्स मिलता है!
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महिमा जी, साभिवादन! ……. आप ने बहुत कुछ कह दिया इस लघु कवि-गोष्ठी की ब्याज से! बस्तुतः आज की यही त्रासदी है! कहने के लिए तो बहुत कुछ है पर ऐसा मुझे लगता है कि मैं जो कहूंगा, सब आप जानती होंगी! पुनश्च!!
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भाई प्रवीण जी, साभिवादन! …. आप ने इस आलेख के माध्यम से यथार्थ का सही चित्रण प्रस्तुत किया है! ” हड्डियों के इन्तजार में क्यों बैठे हो? उन हड्डियों के हकदार तो सिर्फ उनके कुत्ते हैं! ” आज के नेताओं के लिए बिलकुल उपयुक्त पंक्ति! बधाई!
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मान्य भाई रविंदर जी, साभिवादन! …… आप के विचारों से मैं बिलकुल सहमत हूँ! वो नागनाथ थे तो ये सापनाथ हैं! इनका फन कुचलना ही पड़ेगा मगर कुचलेगा कौन? अन्ना और बाबा तो दोनों ही चित होते दिखाई पड़ रहे हैं, अब इन्हें कौन सिखाये कि दोनों को एक साथ हो जाना चाहिए! सधन्यवाद! पुनश्च!!
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श्रद्धेय के. पी. सिंह जी, साभिवादन! ………. आप ने बिलकुल सही कहा, आप की बातों से मैं सहमत हूँ पर बिहार की अपेक्षा उत्तर प्रदेश के यादवों की छवि बिहारी यादवों से शताधिक गुणा साफ-सुथरी और सुन्दर है उनमें संकीर्णता की जगह खुलापन है कहीं से उनमें जातीयता की बू नहीं आती! यहाँ के यादव अब लालू टाइप बन गए हैं!
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श्रद्धेय राजकमल शर्मा जी, साभिवादन! सर्वप्रथम तो स्वयं को मैं इसलिए धन्य मान रहा हूँ कि मुझे आप के स्नेह और प्रेम दोनों ही मिलने लगे हैं | जहाँ और जिस ओर आप ने कृपापूर्वक ध्यानाक्रिष्ट किया है … सर! गत्यात्मकता (छंद-धारा की कविता के प्राण) उक्त पंक्ति के अंत में त्रिमात्रात्मक शब्द की मांग कर रही है और असूल में चार मात्राएँ हो जा रही हैं अतः इसके प्रयोग से यति-भंग का भय है | आगे …..