संगोष्ठी में भाकिसं के राष्ट्रीय मंत्री सुनील पाण्डेय ने सारसंग्रह करते हुए इस चर्चा को गंभीरता के साथ आगे बडाने का आग्रह किया।
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वैशेषिक मत का सारसंग्रह करते हुए अन्नंभट्ट ने यह कहा कि ' प्राची आदि के व्यवहार-हेतु को दिक् (दिशा) कहते हैं।
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दुर्भाग्य से जल्पनिर्णय, सारसंग्रह, सन्मति टीका और त्रिलक्षणकदर्शन आज उपलब्ध नहीं है, केवल उनके ग्रंथों में तथा शिलालेखों में उल्लेख पाए जाते हैं।
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मासों की दृष्टि से राजमार्तण्ड के अनुसार इसके लिए चैत्र तथा पोष को अधिक उपयुक्त माना जाता है, किंतु “ सारसंग्रह ' में ज्येष्ठ तथा पौष को इसके लिए वर्जित कहा गया है।