शुरुआत में स्थानीय नागरिकों ने इस सार्वजनिक मैदान के नमाज़ हेतु उपयोग तथा पक्के निर्माण पर आपत्ति ली थी, फ़िर एक संगठन ने 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन यहाँ तिरंगा फ़हराने की अनुमति मांगी, जिसका अंजुमन ने विरोध किया और तभी से मामला उलझ गया।
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लोकतंत्र की पिछले पांच दशकों से निरंतर हत्या करता आ रहा यह मिट्टी का शेर एक तिरंगे में लपेट दिया गया और एक बड़े सार्वजनिक मैदान पर इसकी अंत्येष्टि कर दी गई. यहाँ भी वो चश्मा पहनकर आया था. नज़र मिलाने की हिम्मत जो नहीं थी.
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स्कलों-कालेजों में रात को रोशनी करनी चाहिए, डीनर पार्टी करनी चाहिएष राजनीतिक दलों को सेमीनार करने चाहिए, सामाजिक संस्थाओं को बच्चों के लिए क्वीज करनी चाहिए, शाम को नाटक आयोजित करने चाहिए, आतिशबाजी करनी चाहिएष सार्वजनिक मैदान या भवन में प्रदर्शनी करनी चाहिए, महत्वपूर्ण आयोजनों की शुरुआत जैसे पुस्तक मेला, नाट्य समारोह, स्कूल या कालेज सप्ताह की शुरुआत 15 अगस्त या 26 जनवरी से ही करनी चाहिए।