इस प्रकार साहचर्यवाद के अनुसार चेतना में दो छापों की उत्पत्ति की एककालिकता (simultaneity) उनके बीच संबंध के निर्माण के लिए आवश्यक तथा पर्याप्त आधार है।
12.
उन्होंने प्रसिद्ध दार्शनिक बेंथम के सिद्धांतों का समर्थन करते हुए उनके मनोवैज्ञानिक पक्ष का विकास किया और साहचर्यवाद को मानसिक यांत्रिकी का रूप देकर सर्वोत्कर्ष पर पहुँचा दिया।
13.
साहचर्यवाद के विरुद्ध सबसे कड़ा रवैया गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के प्रतिपादकों ने अपनाया (जर्मन शब्द ‘ गेस्टाल्ट ' का अर्थ है ‘ बिंब ', ‘ आकृति ', ‘ नमूना ') ।
14.
यह साहचर्यवाद मनोवैज्ञानिक चिंतन में मुख्य प्रवृति बन गया और इस प्रवृत्ति के भीतर ही भौतिकवाद और प्रत्ययवाद के बीच संघर्ष, मन की संकल्पना को लेकर चला और दोनों ने ही मानसिक परिघटनाओं की प्रकृति की व्याख्या अपने-अपने ढ़ंग से की।
15.
मानव चेतना को एक निष्क्रिय तत्व माननेवाले साहचर्यवाद और अन्य सिद्धांतों के विपरीत मनोविज्ञान की बहुत-सी प्रवृत्तियों ने स्मृति से संबंधित प्रक्रियाओं में चेतना की सक्रिय भूमिका को रेखांकित किया और स्मरण तथा पुनर्प्रस्तुति में ध्यान, अभिप्राय (intention) तथा समझ के महत्त्व पर ज़ोर दिया।