जब अन्य भाषा या द्वितीय भाषा, व्यवहार में तो प्रयुक्त हो लेकिन जिन आवश्यकताओं के लिए अपनाई जाती है वह अपनी प्रकृति में अस्थाई तथा अपने प्रयोग में अत्यंत सीमित हो (जैसे पर्यटकों के उपयोग तक सीमित भाषा) तब उसे संपूरक भाषा की संज्ञा दी जाती है ।
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भौगोलिक दृष्टि से विचार करने पर यह दिल्ली, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ आदि थोड़े से ज़िलों तक सीमित भाषा है, जो शताब्दियों तक ब्रजभाषा और अवधी की तुलना में उपेक्षितप्राय रही है और ऐतिहासिक कारणों के प्रसाद से ही यह न केवल आधुनिक युग में भारत से बाहर के कई देशों में फैल गई है, वरन सुदूर अतीत से ही अंतर्राष्ट्रीय यात्रा करती रही है।
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भौगोलिक दृष्टि से विचार करने पर यह दिल्ली, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ आदि थोड़े से ज़िलों तक सीमित भाषा है, जो शताब्दियों तक ब्रजभाषा और अवधी की तुलना में उपेक्षितप्राय रही है और ऐतिहासिक कारणों के प्रसाद से ही यह न केवल आधुनिक युग में भारत से बाहर के कई देशों में फैल गई है, वरन सुदूर अतीत से ही अंतर्राष्ट्रीय यात्रा करती रही है।