अपने जीवन के लिए आवश्यक वस्तुएं जुटा लेने के प्रयासों के उपरांत हमारा मूल मकसद तो मानव जीवन को और सुंदर, सुखद बनाना होना चाहिए, इस काम को करते हुए हमारा वर्तमान जीवन भी जितना सुन्दर, सुखद बन सके तो सोने में सुहागा है।
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प्रत्यक्ष-“ जिस प्रकार व्यवस्था ने कहा ठीक उसी तरह मैं भी कहना चाहूंगा कि भविष्य को अगर, अच्छा, सुन्दर और सुखद बनाना है तो अपने भूत से प्रेरणा लो, सीखो की तुम्हे क्या करना था और तुम क्या कर रहे हो ।
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जहाँ एक ओर सैद्धांतिक (किताबी) तथा व्यावहारिक राजनीति (व्यवहार में राजनीति जिस रूप में है) में मुझे कोई साम्य न दीखता और फलतः इसकी उपयोगिता संदिग्ध दीखती थी वहीँ इतिहास भी मुझे रटने नहीं सीखने की बात लगती थी..मुझे लगता था,हजारों हजारों वर्ष का इतिहास हमें सिर्फ यही तो सिखाता है कि हमें अपने आज को कैसे सुखद बनाना है,क्या करने से बचना है और क्या अवश्य ही करना है..