उन्होंने हमेशा चौकस रहते हुए इस बात का ध्यान रखा कि कैसे हिन्दी को ना समझ में आने वाली क्लिष्टतम भाषा बनाए रखा जा सके ताकि लोग अपनी राष्ट्र भाषा को जन्म-जन्मान्तर तक समझ ही ना पाएँ और इससे बिदककर अंग्रेजी की शरण में जा खडे़ हों या गाली-गलौच की सुप्रचलित भाषा का आदान-प्रदान कर अभिव्यक्ति की अपनी समस्या खुद ही सुलझा लें, भूलकर भी हिन्दी के दरवाज़े पर आकर खड़े ना हों।
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उन्होंने हमेशा चौकस रहते हुए इस बात का ध्यान रखा कि कैसे हिन्दी को ना समझ में आने वाली क्लिष्टतम भाषा बनाए रखा जा सके ताकि लोग अपनी राष्ट्र भाषा को जन्म-जन्मान्तर तक समझ ही ना पाएँ और इससे बिदककर अंग्रेजी की शरण में जा खडे़ हों या गाली-गलौच की सुप्रचलित भाषा का आदान-प्रदान कर अभिव्यक्ति की अपनी समस्या खुद ही सुलझा लें, भूलकर भी हिन्दी के दरवाज़े पर आकर खड़े ना हों।
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उन्होंने हमेशा चौकस रहते हुए इस बात का ध्यान रखा कि कैसे हिन्दी को ना समझ में आने वाली क्लिष्टतम भाषा बनाए रखा जा सके ताकि लोग अपनी राष्ट्र भाषा को जन्म-जन्मान्तर तक समझ ही ना पाएँ और इससे बिदककर अंग्रेजी की शरण में जा खडे़ हों या गाली-गलौच की सुप्रचलित भाषा का आदान-प्रदान कर अभिव्यक्ति की अपनी समस्या खुद ही सुलझा लें, और भूलकर भी हिन्दी के दरवाज़े पर आकर खड़े ना हों ।
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उन्होंने हमेशा चौकस रहते हुए इस बात का ध्यान रखा कि कैसे हिन्दी को ना समझ में आने वाली क्लिष्टतम भाषा बनाए रखा जा सके ताकि लोग अपनी राष्ट्र भाषा को जन्म-जन्मान्तर तक समझ ही ना पाएँ और इससे बिदककर अंग्रेजी की शरण में जा खडे़ हों या गाली-गलौच की सुप्रचलित भाषा का आदान-प्रदान कर अभिव्यक्ति की अपनी समस्या खुद ही सुलझा लें, और भूलकर भी हिन्दी के दरवाज़े पर आकर खड़े ना हों ।