कुंडलिनी योग के अभ्यास से सुप्त कुंडलिनी को जाग्रत कर इसे सुषम्ना में स्थित चक्रों का भेंदन कराते हुए सहस्रार तक ले जाया जाता है।
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कुंडलिनी योग के अभ्यास से सुप्त कुंडलिनी को जाग्रत कर इसे सुषम्ना में स्थित चक्रों का भेंदन कराते हुए सहस्रार तक ले जाया जाता है।
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इड़ा पिंगला के माध्यम से सुषम्ना क्षेत्र में काम करने वाली प्राण विद्युत का विशिष्ट संचार क्रम प्रस्तुत करके कुण्डलिनी जागरण की साधना सम्पन्न की जाती है ।
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पीछे कबीर ने भारतीय ब्रह्मवाद और सूफियों की प्रेमभावना को मिलाकर जो ' निर्गुण संत मत ' खड़ा किया, उसमें भी ' इला, पिंगला, सुषम्ना नाड़ी ' तथा भीतरी चक्रों की पूरी चर्चा रही।