,,, यानि सूक्ष्माणु का ही राज्य था आरम्भ में जो उत्पत्ति के साथ श्रंखला बद्ध तरीके से साधे चार अरब वर्षों में शायद केवल कुछ लाख वर्ष पहले ही मानव के हाथ आ गया,,, किन्तु अज्ञानता वश और कुछ छोटी मोटी सफलता हासिल कर उससे उपजे घमंड के कारण (यह जानते हुए भी कि मानव मस्तिष्क में उपलब्ध अरबों सेल होते हुए भी आधुनिक मानव केवल नगण्य का ही उपयोग कर सकता है) अब उसके हाथ से भी छिनने वाला प्रतीत होता है (?)
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आदमी ही नहीं, सूक्ष्माणु भी ' भले ' और ' बुरे ' होते हैं... मेरे स् व. डॉक्टर साडू भाई भी कहते थे कि एंटीबाईओटिक के व्यक्ति विशेष के लिए सही डोज़ का पता नहीं होने से यदि (विदेशियों पर टेस्ट किये) दवाई की डोज़ भारतीय के लिए अधिक हो तो वो कुछ भले और शायद सारे बुरे, दोनों सूक्ष्माणु, को मार देगी-जिसके कारण जो भालों से लाभ मिल रहा था वो मिलना कम हो जाएगा, जिसके कारण साइड इफेक्ट होंगे, आदि...
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आदमी ही नहीं, सूक्ष्माणु भी ' भले ' और ' बुरे ' होते हैं... मेरे स् व. डॉक्टर साडू भाई भी कहते थे कि एंटीबाईओटिक के व्यक्ति विशेष के लिए सही डोज़ का पता नहीं होने से यदि (विदेशियों पर टेस्ट किये) दवाई की डोज़ भारतीय के लिए अधिक हो तो वो कुछ भले और शायद सारे बुरे, दोनों सूक्ष्माणु, को मार देगी-जिसके कारण जो भालों से लाभ मिल रहा था वो मिलना कम हो जाएगा, जिसके कारण साइड इफेक्ट होंगे, आदि...