इसे राहुल सांकृत्यायन की कृति ' वोल्गा से गंगा ' और भगवत शरण उपाध्याय की ' इतिहास पर खून के छींटे ' की परंपरा का सृजनात्मक विकास कहा जा सकता है।
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स्टीफनी मारी मैक्महोन-लेवेस्क्यु (जन्म सितम्बर 24,1976) के कार्यकारी उपाध्यक्षा, विश्व कुश्ती मनोरंजन, सृजनात्मक विकास और गतिविधियाँ, व्यवसायी कुश्ती खिदमतगार और सामयिक पहलवान अपने कुमारी नाम स्टीफनी मैक्महोन से बेहतर जानी जाती है.
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स्टीफनी मारी मैक्महोन-लेवेस्क्यु [3] (जन्म सितम्बर 24,1976)[1] के कार्यकारी उपाध्यक्षा, विश्व कुश्ती मनोरंजन, सृजनात्मक विकास और गतिविधियाँ, व्यवसायी कुश्ती खिदमतगार और सामयिक पहलवान अपने कुमारी नाम स्टीफनी मैक्महोन से बेहतर जानी जाती है.
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कानपुर में सृजनात्मक विकास समिति नाम की एक संस्था के अध्यक्ष नागेंद्र सिंह गौतम के मुताबिक फिल्म जिस्म-2 के प्रचार-प्रसार के लिए एफएचएम मैगजीन के मई अंक के कवर पेज पर एक युवती का अश्लील फोटो छापा गया था।
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अतः हर छात्र का यह क त व्य है कि वह स्वयं को सदैव अनुशासन में रखकर अध्ययन करे तथा देश के सृजनात्मक विकास की बात करे किन्तु आज देखने में आ रहा है कि छात्रों में अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है ।
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साहित्य-संस्कृति की प्रगतिशील विरासत को गहराई से आत्मसात् कर उसका सृजनात्मक विकास करते हुए, उसे समृद्ध बनाते हुए उसका उपयोग जनता को जगाने, उसमें उत्साह का संचार करने और संगठित होकर एक समतामूलक समाज के निर्माण हेतु उसे प्रेरित करने का काम उन्होंने बखूबी किया।
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इसीलिए कामसूत्र के रचियता वात्स्यायन का मानना है कि यदि मनुष्य अपनी कामात्मक भावना को कलाओं में लगा दे तो उसकी कामात्मक भावना की संतुष्टि होने के साथ ही उसकी कामात्मक भावना की संतुष्टि होने के साथ ही उसका सृजनात्मक विकास भी हो जाता है।
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इसीलिए कामसूत्र के रचियता वात्स्यायन का मानना है कि यदि मनुष्य अपनी कामात्मक भावना को कलाओं में लगा दे तो उसकी कामात्मक भावना की संतुष्टि होने के साथ ही उसकी कामात्मक भावना की संतुष्टि होने के साथ ही उसका सृजनात्मक विकास भी हो जाता है।
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पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर भारत के पश्चिम राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दमण दीव, दादरा नगर हवेली की प्रदर्शनकारी कलाओं, चाक्षुष-कलाओं तथा वहां की लोक एवं आदिम कलाओं के सृजनात्मक विकास एवं उन्हें सुविधाएं प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है।
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इस विवाद से गजेन्द्र राणा को यह सबक तो सीखना ही चाहिये कि अगर उन्होंने ‘ बबली ' और ‘ लीला घस्यारी ' को ही अपनी सीमारेखा मान लिया होता तो शायद आज इतनी फजीहत झेलने के बजाय उन्होंने अपना काफी सृजनात्मक विकास कर लिया होता।