भारत सरकार ने 1 मार्च 1972 को सेना डाक सेवा कोर (एपीएस) नाम से इस संगठन को स्वतंत्र दर्जा प्रदान किया.
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चीन युद्द तथा 1965 और १९७१ के पािकस्तान के खिलाफ युद्द के दौरान सेना डाक सेवा ने बहुत सराहनीय कार्य किया ।
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1937 में इस दिशा में ठोस पहल हुई और डाक नियमावली में सेना डाक सेवा को लड़ाकू बल का दर्जा प्रदान किया गया।
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नोट-विस्तार से सेना डाक सेवा के बारे में जानकारी के लिए पढे-भारतीय डाक: सदियों का सफरनामा-नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया, 5 ग्रीन पार्क, नयी दिल्ली, मूल्य 125 रूपए।
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1 मार्च 1972 से सेना डाक सेवा कोर के रूप में इसे मान्यता मिली. अपनी सैनिक भूमिका के मुताबिक सेना डाक घर पूरी तरह मोबाइल और सभी साधनो से लैस हैं.
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पहले विश्वयुद्द तक फील्ड पोस्ट आफिस का संचालन भारतीय डाक-तार विभाग ही कर रहा था और लंबे समय तक तदर्थ आधार पर ही काम चला. नियमित सेना डाक सेवा के गठन का मामला लंबे समय तक टाला जाता रहा.
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सेना डाक सेवा थल सेना, भारतीय वायुसेना,असम रायफल्स,केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल,भारत-तिब्बत सीमा पुलिस जैसे संगठनों तथा सीमित आधार पर भारतीय नौसेना को अपनी सेवाऐं प्रदान कर रहा है.संयुक्त राष्ट्र सेना की भारतीय सैन्य टुकडियों को भी सेना डाक सेवा सुविधा प्रदान कर रही है.
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सेना डाक सेवा थल सेना, भारतीय वायुसेना,असम रायफल्स,केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल,भारत-तिब्बत सीमा पुलिस जैसे संगठनों तथा सीमित आधार पर भारतीय नौसेना को अपनी सेवाऐं प्रदान कर रहा है.संयुक्त राष्ट्र सेना की भारतीय सैन्य टुकडियों को भी सेना डाक सेवा सुविधा प्रदान कर रही है.
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अगस्त 1945 में सहयोगी सैनिकों की जापान पर विजय के बाद भारतीय सेना डाक सेवा के रूप में, तब विख्यात सेवा की शुरूआत की गर्इ और इससे मौजूदा 137 एफ पी ओ-क्षेत्रीय डाक घरों को बंद करने की भी प्रकि्रया शुरू हुर्इ।
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तभी से एक स्थाई संगठन बनाने की मुहिम चली. आजादी के बाद सेना डाक सेवा को व्यवस्थित बनाया गया.भारतीय डाक विभाग द्वारा चलायी जा रही सारी सेवाऐं और अतीत में सेना सिग्रल कोर द्वारा दी जा रही सभी सेवाऐं सेना डाक घरों के द्वारा प्रदान की जा रही है.