उस वर्ग ' की रचनाएं छोड़ गए लगता है-मसलन कृष् ण वलदेव वैद की ‘ विमल उर्फ जाएं तो जाएं कहॉं ' वहॉं मिलेंगी राहुल वाली गालियॉं और हॉं वहॉं भी वे प्रभावोत् पादकता बढ़ाती ही हैं, और मुझे राहत महसूस हो रही है कि आपने नैपकिन का अर्थ ‘ वो ' नैपकिन लिया-‘ विमल … ' के बाद नैपकिन का अर्थ सेनीटरी नैपकिन हो जाता और समाजशास् त्र बदल जाता … नहीं।