लेकिन इस केन्द्रापसारी प्रवृत्ति को भी अन्तिम मान लेना तो वैसा ही है जैसे हम पृथ्वी को सौर-मण्डल से अलग मान लें।
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नये सौर-मण्डल विकसित होते है तथा पुराना कहीं खो जाता है परिवार का गणितीय प्रारूप वृत्त के द्वारा भी प्रस्तुत किया जा सकता है ।
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यह सौर-मण्डल (solar system), जिसमें हमारी पृथ्वी भी शामिल है, देखने में तो बहुत बड़ा मालूम होता है, लेकिन पूरी सृष्टि की तुलना में इसकी कोई हैसियत नहीं।
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कम्प्यूटर सिम्यूलेशन यह दर्शाते हैं कि एक सूक्ष्म-ग्रहीय चकरी से ऐसे पार्थिव ग्रहों का निर्माण किया जा सकता है, जिनके बीच की दूरी हमारे सौर-मण्डल में स्थित ग्रहों के बीच की दूरी के बराबर हो.
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सौर-मण्डल में सूर्य से तुम्हारी विशिष्ठ दूरी के संयोग के कारण तुम पानी को तरल रूप में धारण कर पाई हो ; इस संयोग के परिणाम स्वरूप ही जीवन की जय-यात्रा प्रारम्भ हो पाई है।
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हर सन्तान स्वयं केन्द्रक की सत्ता ग्रहण करने लगती है ; उनके पृथक और स्वतन्त्र सौर-मण्डल विकसित होने लगते हैं तथा अबतक के केन्द्रक की ओर उन्मुख बल क्रमश: कमजोर होते रहते हैं ।
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बाद हुआ होगा. [5] एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता चंद्रमा का अपेक्षाकृत कम घनत्व है, जिसका अर्थ अवश्य ही यह होना चाहिये कि इसमें एक बड़ा धातु का केंद्र नहीं है, जैसा कि सौर-मण्डल के आकाशीय पिण्डों में होता है.
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प्रातः की किरणें कमल लोचनों में, और शशि धुंधला रहा जलते दिये में रात का जादू गिरा जाता इसी से, एक अनजानी कसक जगती हिये में टूटते टकरा सपन के गृह-उपगृह, जब कि आकर्षण हुए हैं सौर-मण्डल के पुराने।
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[15] अब व्यापक रूप से स्वीकार की जाने वाली नीहारिका की अवधारणा के अनुसार जिस प्रक्रिया से सौर-मण्डल के ग्रहों का उदय हुआ, वही प्रक्रिया ब्रह्माण्ड में बनने वाले सभी नये तारों के चारों ओर अभिवृद्धि चकरियों का निर्माण करती है, जिनमें से कुछ तारों से ग्रहों का निर्माण होता है.
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खेलते हम सौर-मण्डल के परे भी लहरियों के और किरनों के अनूठे खेल रोकना मैं चाहता था उस पतन को किन्तु उल्का पिण्ड धँसता जा रहा था वायु-मण्डल में धरा के, तन रहा प्रतिपल हवा का मकड़जाल, धधकती थी आग घर्षण की, गा रहा था जो अभय के गीत वह उल्का बन चुका था अग्नि-व्याल, समय ने कैसा किया विश्वासघात