इससे पहले वैज्ञानिकों का मानना था कि कार्निया पांच परतों कार्नियल इपिथेलियम, बोमैंस लेयर, कार्नियल स्ट्रोमा, डिस्मेट्स मेम्ब्रेन और कार्नियल इंडोथेलियम से मिलकर बना होता है।
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एस में कुछ हड्डीवाला, हेमतोपोइएसिस हो सकता है जहाँ कहीं भी अंडाशय या गुर्दे की आपूर्ति, जैसे पेट,प्लीहा रक्त धीमी है एक ढीला स्ट्रोमा के संयोजी ऊतक और.[[कशेरुकी जीव
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इसके अलावा, दूसरी तकनीक फोटोरिफ्रेक्टिव किरेटोटमी में एक्जाइमर लेजर से कॉर्निया के बीच के एरिया से स्ट्रोमा को छीलकर कॉर्निया की सतह को सीधी कर देते हैं लेकिन इस तकनीक के भी दुष्प्रभाव होते हैं।
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इसके अलावा, दूसरी तकनीक फोटोरिफ्रेक्टिव किरेटोटमी में एक्जाइमर लेजर से कॉर्निया के बीच के एरिया से स्ट्रोमा को छीलकर कॉर्निया की सतह को सीधी कर देते हैं लेकिन इस तकनीक के भी दुष्प्रभाव होते हैं।
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ये गड्ढे प्रारंभिक तौर पर स्ट्रोमा की सतह पर पीले क्षेत्रों के रूप में देखे जा सकते हैं, लेकिन परिपक्व होने पर ये खुल जाते हैं और सतह के छिलके को उतार कर अनावृत्त किए जा सकते हैं।
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अब विज्ञानी स्ट्रोमा के निर्माण में संलग्न हैं. कोर्निया की ९० फीसद मोटाई(थिकनेस इसी से है) के लिए यही स्ट्रोमा जिम्मेवार रहता है.स्ट्रोमा एंडो-थेलियम और एपी-थेलियम के बीच एक सेतु का काम करता है.कोर्निया की सबसे बाहर वाली परत को ही एपी-थेलियम कहा जाता है.आँख में धूल-जीवाणु आदि के प्रवेश से यही परत बचाए रहती है.टीयर्स से ऑक्सीजन और सेल-न्यू-त्रियेंट्स ज़ज्ब करने का काम भी यही एपी-थेलियम करती है.
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अब विज्ञानी स्ट्रोमा के निर्माण में संलग्न हैं. कोर्निया की ९० फीसद मोटाई(थिकनेस इसी से है) के लिए यही स्ट्रोमा जिम्मेवार रहता है.स्ट्रोमा एंडो-थेलियम और एपी-थेलियम के बीच एक सेतु का काम करता है.कोर्निया की सबसे बाहर वाली परत को ही एपी-थेलियम कहा जाता है.आँख में धूल-जीवाणु आदि के प्रवेश से यही परत बचाए रहती है.टीयर्स से ऑक्सीजन और सेल-न्यू-त्रियेंट्स ज़ज्ब करने का काम भी यही एपी-थेलियम करती है.