कभी कभी कहीं कुछ ऐसा पढने को मिल जाता हैं जो याद दिला जाता हैं की एक मकसद बनाना होगा हमे स्त्री पुरुष समानता की कोशिश को.
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कभी कभी कहीं कुछ ऐसा पढने को मिल जाता हैं जो याद दिला जाता हैं की एक मकसद बनाना होगा हमे स्त्री पुरुष समानता की कोशिश को.
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एक प्रश्न मेरा भी है-क्या स्त्री पुरुष समानता के विचारों के बावजुद ' LADIES FIRST ' यानि स्त्री के लिए विशेष व्यवहार की बात कहना उचित है?
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अति सर्वत्र वर्जयेत ” आखिरकार किसी न किसी बिंदु पे जाकर तो सभी को मानना ही पड़ेगा की कुछ विशिस्ट परिपेक्ष्यो में हमें स्त्री पुरुष समानता को मर्यादित करना ही पड़ेगा.
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और इससे मुक्त होना भी बहुत मुश्किल हैं लेकिन आपने पोस्ट में देख हो तो मैंने आम महिलाओंके बजाए उन महिलाओं की सोच पर ज्यादा जोर दिया है जो स्त्री पुरुष समानता की अवधारणा में यकीन करती हैं.
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दुनिया के कई विकसित देशों में तलाक संबंधी कानून स्त्री पुरुष समानता की बुनियाद पर टिके हैं उनमें औरत पर कृपा करने का भाव नहीं है स्त्री पूरे सम्मान और गरिमा के साथ विवाह के रिश्ते से बाहर निकलती है
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अगर स्त्री पुरुष समानता है, अगर दोनों को ह्क्क है कि वो बाहर जा कर कमाएं तो क्या दोनों को ये हक्क नहीं कि दोनों में से जो चाहे घरेलू ग्रहस्थ बन कर जीवन जी ले और दूसरा उसको स्पोर्ट कर ले।
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और हम में से जितने भी स्त्री पुरुष समानता की बात करते हैं वो स्त्रियों को गलत करने के लिये उकसाते नहीं हाँ सोच में बदलाव चाहते हैं जहां स्त्री और पुरुष दोनों के लिये समाज के कानून एक से बनाए जाये ।
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अगर स्त्री पुरुष समानता है, अगर दोनों को ह्क्क है कि वो बाहर जा कर कमाएं तो क्या दोनों को ये हक्क नहीं कि दोनों में से जो चाहे घरेलू ग्रहस्थ बन कर जीवन जी ले और दूसरा उसको स्पोर्ट कर ले।
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अगर स्त्री पुरुष समानता है, अगर दोनों को ह्क्क है कि वो बाहर जा कर कमाएं तो क्या दोनों को ये हक्क नहीं कि दोनों में से जो चाहे घरेलू ग्रहस्थ बन कर जीवन जी ले और दूसरा उसको स्पोर्ट कर ले।