तब जानकारों ने माना था कि जल्द ही सरकारें इस संबंध में कड़े कानून और एक निश्चित नीति बनाकर इसके दुरूपयोग को रोक लेंगी, लेकिन लगभग एक दशक बाद भी किसी विनियमन और नीति के अभाव में स्थानापन्न मातृत्व एक ऐसे बेलगाम धंधे की शक्ल अख्तियार कर चुका है, जिसकी चपेट में वे महिलाएं हैं जिनको तमाम आश्वासनों के बाद इसके लिए राजी किया जाता है।