लेनिन के शब्दों में “ वर्ग लोगों के बड़े-बड़े ग्रुपों को कहते हैं, जो सामाजिक उत्पादन की इतिहास द्वारा निर्धारित पद्धति में अपने स्थान की दृष्टि से, उत्पादन के साधनों के प्रति अपने सम्बन्धों की दृष्टि से (अधिकांश मामलों में क़ानूनों में निश्चित तथा प्रतिपादित), श्रम के सामाजिक संगठन में अपनी भूमिका की दृष्टि से और फलस्वरूप सामाजिक सम्पदा के अपने भाग की प्राप्ति तथा आकार की दृष्टि से एक-दूसरे से भिन्न होते हैं।