प्रवासी भारतीय दिवस में शरद आलोक महात्मा गांधी जी की पौत्री इला गांधी को स्पाइल और वैश्विका भेंट करते हुए
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सुरेशचंद्र शुक्ल ' शरद आलोकÓ पिछले 20 बरसों से नार्वे से हिंदी-नार्वेजीय भाषा की पत्रिका स्पाइल दर्पण का संपादन कर रहे हैं।
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भूल जाइए इस घिसे पिटे जुमले को-“ स्पेअर दारोड एंड स्पाइल दा चाइल्ड ”-वो ज़माना और था ।
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आपकी कविताएँ समकालीन भारतीय साहित्य, अमृतसागर, आजकल, कादंबिनी, स्पाइल, शांति दूत तथा पुरवाई में प्रकाशित हुई हैं।
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यहाँ स्पाइल के संपादक सुरेशचन्द्र शुक्ल ने उन्हें पत्रिका भेंट की, उन्हें बधाई दी और अपनी राजनैतिक भागीदारी की सूचना दी.
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नार्वे में हिंदी पत्रिकाएं नार्वे में हिंदी कि मात्र दो पत्रिकाएं ' स्पाइल '-दर्पण और वैश्विका पिछले पांच वर्षों से छप रही है।
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बैंड मैडनेस ने भी लोगों का खूब मनोरंजन किया लेकिन स्टेडियम में मौजूद दर्शकों और ऐथलीट्स ने सबसे ज्यादा ‘ स्पाइल गर्ल्स ' को पसंद किया।
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1988 में शुरू की गयी उनकी हिंदी और नार्वेजी भाषाओं में छपने वाली पत्रिका स्पाइल दर्पण में आज भी नए लेखकों को महत्व दिया जाता है।
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गत इक्कीस वर्षो से नार्वे में हिंदी की पत्रिकाओं ' परिचय ' और ' स्पाइल ' (दर्पण) का संपादन कर रहे शरद आलोक का वास्तविक नाम डॉ. सुरेशचंद्र शुक्ल है।
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अबतक देश-विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं यथा, वागर्थ, हंस, कादम्बिनी, आधारशिला, हिन्दीजगत, हिन्दी-चेतना, निकट, पुरवाई, स्पाइल आदि तथा अनुभूति-अभिव्यक्ति, हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुंज सहित तमाम वेब पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ प्रकाशित।