इस क्रम में वह स्वाभाविक व स्वच्छंद प्रेम और कामेच्छाओं को मनचाहे तरीके से तृप्त नहीं कर सकता।
12.
प्राकृतिक प्रेम को स्वाभाविक प्रेम, सहज प्रेम, नैसर्गिक प्रेम, स्वच्छंद प्रेम आदि कुछ भी कहा जा सकता है।
13.
तीसरे वर्ग में घनानंद, बोधा, द्विजदेव ठाकुर आदि रीतिमुक्त कवि आते हैं जिन्होंने स्वच्छंद प्रेम की अभिव्यक्ति की है।
14.
जिस प्रेम की मर्यादा प्रेम के भीतर से निकले वह स्वच्छंद प्रेम और जिसकी मर्यादा समाज निर्धारित करे, वह सामाजिक प्रेम।
15.
जिस प्रेम की मर्यादा प्रेम के भीतर से निकले वह स्वच्छंद प्रेम और जिसकी मर्यादा समाज निर्धारित करेए वह सामाजिक प्रेम।
16.
प्राकृतिक प्रेम को स्वाभाविक प्रेम, सहज प्रेम, नैसर्गिक प्रेम, स्वच्छंद प्रेम आदि कुछ भी कहा जा सकता है।
17.
तीसरे वर्ग में घनानंद, बोधा, द्विजदेव ठाकुर आदि रीतिमुक्त कवि आते हैं जिन्होंने स्वच्छंद प्रेम की अभिव्यक्ति की है।
18.
साफ शब्दों में कहूँ तो अपने छंद में ; लयद्ध में जीना स्वच्छंद प्रेम है और समाज के अनुसार जीना सामाजिक प्रेम है।
19.
साफ शब्दों में कहूँ तो अपने छंद में (लय) में जीना स्वच्छंद प्रेम है और समाज के अनुसार जीना सामाजिक प्रेम है।
20.
अत: तृतीय धारा के छायावादी तथा रहस्यवादी काव्य में द्विवेदीयुगीन स्थूल मर्यादावाद, प्रवचनात्मकता और विवरणात्मक प्रकृतिचित्रण के स्थान पर स्वच्छंद प्रेम की पुकार, प्रेयसी का देवीकरण, अंतरराष्ट्रीयता और विश्वमानववाद, प्रकृति और प्रेयसी के माध्यम से निजी आशानिराशाओं का वर्णन, प्रकृति पर चेतना का आरोप, सौंदर्य अनुसंधान, अलौकिक से प्रेम के कारण द्विवेदीयुगीन स्थूल संघर्ष से पलायन, गीतात्मकता, लक्षण, विशेषणविपर्यय तथा भाषा का कोमलीकरण प्रत्यक्ष और प्रमुख प्रवृत्तियाँ हैं।