कारण साफ़ है की एक खून से बने होते है फ़िर भी हम एक स्वतंत्र व्यक्ति ही होते है. और ये कतई जरूरी नहीं की हमारी सोच हमारा दृष्टिकोण दुसरे व्यक्तियों से मिलता जुलता हो...हम एक स्वतन्त्र व्यक्ति ही है शरीर और मन से....
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निश्चय है कि इस तिराहे के अगल-बगल लोग घटना के समय मौजूद रहें होंगे, लेकिन एक भी स्वतन्त्र चश्मदीद साक्षी को घटना का गवाह नहीं बनाया गया है जिससे अभियोजन कहानी सन्देहास्पद प्रतीत हो रही है और गिरफ्तारी करने वाले पुलिस पार्टी द्वारा यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि किसी स्वतन्त्र व्यक्ति को घटना का गवाह बनाने का प्रयास किया गया अथवा नहीं।
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शिशु-मानस के चित्रण की सच्चाई के लिए मैंने ' शेखर ' के आरम्भ के खण्डों में घटनास्थल अपने ही जीवन से चुने हैं, फिर क्रमशः बढ़ते हुए शेखर का जीवन और अनुभूति-क्षेत्र मेरे जीवन और अनुभूति-क्षेत्र से अलग चला गया है, यहाँ तक कि मैंने स्वयं अनुभव किया है कि मैं एक स्वतन्त्र व्यक्ति की प्रगति का दर्शक और इतिहासकार हूँ ; उसके जीवन पर मेरा किसी तरह का भी वश नहीं रहा है।
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एक बात जो मैं कई बार दोहरा चुकी हूँ की संतान अपने खूनसे पैदा होनेके बावजूद वह एक स्वतन्त्र व्यक्ति है उसका स्वीकार करो...अपनी सोचको उस पर लादनेसे पहले उसकी सोच को समजने की कोशिश करो...एक दिन का बच्चा भी अपनी रोने की आवाजसे समजा देता है अपनी माँको समजा देता है की उसे भूख लगी है या फिर सु सु करदी है....तो फिर उसकी जिंदगीका निर्णय उसे करने की आज़ादी क्यों नहीं देते हम???