लिपि रोमन हो गयी है कॉमन अब इस दुनिया को कुछ नया चाहिए जिन पर टिकाये बैठे हो अपनी उम्मीद उस पश्चिम को अपनी दुकानदारी अब हिंदी में चाहिए रोमन में हिंदी चलाने की चाहत रखने वालों से कोई शिकायत नहीं देवनागरी से रहित होने पर उनसे हमदर्दी जताना चाहिए पर रोमन की गठरी सिर पर रख कर घूमने वालों की दरियादिली हिंदी भाषा को नहीं चाहिए कभी हिंदी गरीबों की भाषा कहलाती थी तब क्यों नहीं उठा था लिपि का सवाल अब क्यों मच रहा है बवाल अब ऐसा क्या हो गया कमाल कि सबको हिंदी ही चाहिए