जीवन का गणित इतना कैलकुलेटिव कहाँ होता है...सिर्फ गणित में ही होता है, दो दूनी चार, आठ दूनी सोलह हमेशा, जिंदगी में नहीं...उसका तो अपना ही गणित, अपनी ही परिभाषा, हर एक के लिए अलग...किस बात पर हंसी आये, किस बात पर रोना....
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जीवन का गणित इतना कैलकुलेटिव कहाँ होता है...सिर्फ गणित में ही होता है, दो दूनी चार, आठ दूनी सोलह हमेशा, जिंदगी में नहीं...उसका तो अपना ही गणित, अपनी ही परिभाषा, हर एक के लिए अलग...किस बात पर हंसी आये, किस बात पर रोना....