बहुत कुछ देखते हुए भी नहीं देखती तुम तुम्हारे सहेजने से है यह सहज तुम्हारे प्रेम से ही हूँ इस लायक कि कर सकूँ प्रेम कई बार तुम हो जाती हो अदृश्य जब भटकता हूँ किसी और स्त्री की कामना में हिस्र पशुओं से भरे वन में
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वाद विवाद से संवाद की ओर जाना होता है पर जब विवाद व्यक्तिवाद के जंगल में हिस्र हो जाए और आरोप-प्रत्यारोप के पीछे ईर्ष्या, कुंठा और ‘ ठिकाने लगाने की ' बनैली इच्छाएं काम करने लगे तो संवाद की संवादहीनता का खतरा पैदा हो जाता है.
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या फिर यह अपनी गलती के अह्सास की स्वीकरोक्ति? वैसे ये कुछ भी हो गलती की स्वीकरोक्ति जैसा नही है क्योंकि अगर ऐसा होता तो यह कतई नही होता कि-कई बार तुम हो जाती हो अदृश्य जब भटकता हूँ किसी और स्त्री की कामना में हिस्र पशुओं से भरे वन में
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अब यह अन्य मामला है कि मुझे इस हिस्र और रक्तरंजित तानाशाही के विचार के प्रति बहुत शंकाएं हैं, खासकर तब जब कि वो किसी हिरावल पार्टी के स्वनियुक्त प्रतिनिधि की तरफ़ से आएं, जो, हम एक लम्बे ऐतिहासिक अनुभव से पहले से ही जानते हैं, कि इस ‘नए' समाज पर नए शासक होंगे।
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अब यह अन्य मामला है कि मुझे इस हिस्र और रक्तरंजित तानाशाही के विचार के प्रति बहुत शंकाएं हैं, खासकर तब जब कि वो किसी हिरावल पार्टी के स्वनियुक्त प्रतिनिधि की तरफ़ से आएं, जो, हम एक लम्बे ऐतिहासिक अनुभव से पहले से ही जानते हैं, कि इस ‘ नए ' समाज पर नए शासक होंगे।
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बाप रे घनघोर मंथन मगर विचार कितने अलग अलग से है:-) जाहिर है लोगों के कार्य व्यवहार पर उनके पारिवारिक संस्कार,खुद का अपना स्वभाव और परिष्कृत होते जाना ज्यादा मायने रखता है...शायद ये कार्य बिगड़े बच्चे या आपराधिक मनोवृत्ति के लोग करते हैं मगर गौहाटी का मामला एक मॉस हिस्टीरिया लगता है जो उस लड़की को सबक सिखाने को हिस्र हो उठा..
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हालाँकि मुगलों की तरह अंग्रेजों ने भी हिस्र प्रुवृति के समुदायों को अलग-अलग रेजीमेंटों में बांटकर जाटों के खिलाफ मराठों को, सिखों के खिलाफ गोरखों को, मराठों के खिलाफ राजपूतों को और राजपूतों के खिलाफ पहाड़ियों को लड़ाकर-भारत के मार्शल समुदाय को बुरी तरह विभाजित कर रखा था किन्तु अधिकांस दलित, शोषित अछूत जातियों को उच्च सवर्ण जातियों के द्वारा उत्पीडन को समाप्त करने की दिशा में उनकी कोई रूचि नहीं थी.