पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ईद के दिन को सामारोह, उत्सव तथा एक दूसरे की सहायता का दिन मानते हैं और अपनी एक प्रार्थना में जो उनकी प्रार्थनाओं के संकलन सहीफए सज्जादिया की ४५वीं प्रार्थना है, इस प्रकार कहते हैः हे ईश्वर!
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मुझे वरदान दो जीवन भर तेरी उपासना में लीन रहू तेरे नाम के साथ जीवन का त्याग करूं जीवन में हमेशा गरीबो, मजबूरो का साथ देता रहू हे ईश्वर! मुझे वरदान दो माता-पिता की सेवा करूं अपने नबी के दिखाए पथ पर चलूं उसी पर चलते-चलते ईश्वर से जा मिलूं हे ईश्वर!
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मुझे वरदान दो जीवन भर तेरी उपासना में लीन रहू तेरे नाम के साथ जीवन का त्याग करूं जीवन में हमेशा गरीबो, मजबूरो का साथ देता रहू हे ईश्वर! मुझे वरदान दो माता-पिता की सेवा करूं अपने नबी के दिखाए पथ पर चलूं उसी पर चलते-चलते ईश्वर से जा मिलूं हे ईश्वर!
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भाइयों, मैं आपके सामने उस भजन की कुछ पंक्तियां प्रस्तुत करूंगा, जिसको मैं अपने बचपन से दोहराता आया हूं और जिसे करोड़ों लोग प्रतिदिन दोहराते हैं-'जैसे विभिन्न स्रोतों से उद्भूत विभिन्न धाराएं अपना जल सागर में विलीन कर देती हैं, वैसे ही हे ईश्वर! विभिन्न प्रवृत्तियों के चलते जो भिन्न मार्ग मनुष्य अपनाते हैं, वे भिन्न प्रतीत होने पर भी सीधे या अन्यथा, तुझ तक ही जाते हैं.'