उपर्युक्त कारणों से उत्पन्न होनेवाले मुख्य रोग हीमोफिलिया (haemophilia), गर्भज रक्तनाल कोशिकाप्रसु रोग, पारिवारिक सावधिक अंगघात तथा मस्तिष्क विकार एवं ऐलर्जी रोग, जैसे एक्जीमा और श्वसनीगत श्वास रोग आदि हैं1
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वे पाँच संस्थान “भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद”; “श्री सदगुरु सेवा ट्रस्ट, चित्रकूट धाम”; “प्रमस्तिष्क अंगघात विभाग, निजाम आयुर्विज्ञान संस्थान, हैदराबाद”; “मनोविज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय” तथा “राष्ट्रीय दृष्टिहीन विकलांग संस्थान, देहारादून” है।
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वे पाँच संस्थान “भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद”; “श्री सदगुरु सेवा ट्रस्ट, चित्रकूट धाम”; “प्रमस्तिष्क अंगघात विभाग, निजाम आयुर्विज्ञान संस्थान, हैदराबाद”; “मनोविज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ” तथा “राष्ट्रीय दृष्टिहीन विकलांग संस्थान, देहारादून” है।
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साल्क (1955) और सेबिन (1962) टीकों के इस्तेमाल की स्वीकृति मिलने के बाद से दुनिया के लगभग सभी देशों से पोलियोमाइलिटिस (शिशु अंगघात) का उन्मूलन हो चुका है।
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इस अधिनियम के अनुसार केन्द्रीय सरकार का यह दायित्व है कि वह ऑटिज्म, प्रमस्तिष्क अंगघात, मानसिक मंदता और बहु विकलांगता ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याण के लिए, नई दिल्ली में राष्ट्रीय न्यास का गठन करें ।
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स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क अंगघात, मानसिक मंदता और बहुविकलांगताग्रस्त व्यिक्तियों के कल्याणार्थ राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999: यह अधिनियम विशेष प्रकार की मानसिक नि: शक्तता वाले व्यक्तियों के कल्याण के लिए एक राष्ट्रीय न्यास के गठन का प्रावधान करता है।
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उल्लेखनीय है कि प्रशिक्षण के अंतिम दिन प्रमस्तिष्क अंगघात (सी. पी.) से प्रभावित बच्चे तो आसानी से पानी में उतर गये किन्तु स्वपरायणता (आटिज्म) से ग्रसित बच्चों को काफी प्रयास के बाद ही उतारा जा सका ।
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मस्तिष्कगत विद्रधि, मस्तिष्कगत अर्बुद, मस्तिष्क कला शोथ, मेनिनजाइटिस, मस्तिष्क शोथ, फिर गजन्य कारण मस्तिष्क वाहकघनास्रता, शिरा शोथ, धातु क्षय, शिरा घनास्रता, मस्तिष्क की सूक्ष्म वाहिनीमें घनास्रता का टुकड़ा रुककर मार्ग अवरुद्ध हो जाता है जिसके कारण उस क्षेत्रकी रक्त आपूर्ति रुककर अंगघात होता है.
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यह भी प्रतीत होता है कि जो लोग सबसे गंभीर किस्म के अंगघात का अनुभव करते हैं और जिनके क्रिया-कलापों में सबसे ज्यादा सुधार आया होता है वे अब उन लोगों के मुकाबले ज्यादा परेशानी अनुभव करते हैं मूलत: जिनके अंगघात कम गंभीर रहे होते हैं।
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यह भी प्रतीत होता है कि जो लोग सबसे गंभीर किस्म के अंगघात का अनुभव करते हैं और जिनके क्रिया-कलापों में सबसे ज्यादा सुधार आया होता है वे अब उन लोगों के मुकाबले ज्यादा परेशानी अनुभव करते हैं मूलत: जिनके अंगघात कम गंभीर रहे होते हैं।