पत्थर भी अपने भीतर थोड़ी मोम बचा कर रखता है ख़ुद आग में होता है बुझ जाने का हुनर जब वह अपने आग होने से थक जाती है गिरते हुए कंकड़ को अभय दे अंगुल भर खिसक जाता है समुद्र एक दिन सबसे हिंसक पशु की आंखों की कोर पर एक गीली लकीर धीरे-धीरे काजल की तरह दिखने
22.
पत्थर भी अपने भीतर थोड़ी मोम बचा कर रखता है ख़ुद आग में होता है बुझ जाने का हुनर जब वह अपने आग होने से थक जाती है गिरते हुए कंकड़ को अभय दे अंगुल भर खिसक जाता है समुद्र एक दिन सबसे हिंसक पशु की आंखों की कोर पर एक गीली लकीर धीरे-धीरे काजल की तरह दिखने...
23.
पत्थर भी अपने भीतर थोड़ी मोम बचा कर रखता है ख़ुद आग में होता है बुझ जाने का हुनर जब वह अपने आग होने से थक जाती है गिरते हुए कंकड़ को अभय दे अंगुल भर खिसक जाता है समुद्र एक दिन सबसे हिंसक पशु की आंखों की कोर पर एक गीली लकीर धीरे-धीरे काजल की तरह दिखने लगती है सबसे क्रूर इंसान भी रोता है और प्रार्थना में एक दिन उठाता है हाथ
24.
अरे सलोने ` कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज लिवायें सी दे एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये।