क्रिया के तीन भेद माने जाते है:-१.अकर्मक २.सकर्मक ३.द्विकर्मक१.अकर्मक क्रिया:-अकर्मक क्रिया का शाब्दिक अर्थ होता है-कर्म रहित।
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इसमें मुख्यतः अकर्मक क्रिया का ही प्रयोग होता है और साथ ही प्रायः निषेधार्थक वाक्य ही भाववाच्य में प्रयुक्त होते हैं।
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पहाड़ी भाषाओं के ही समान नेपाली में भी अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ले (ने) शब्द का प्रयोग होता है।
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वाक्य में खाने का व्यापार राम करता है और खाने का फल भी राम पर ही पड़ता है, इसलिए खाता है अकर्मक क्रिया है।
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अकर्मक क्रियाः जिस क्रिया से सूचित होने वाला व्यापार कर्ता करे और उसका फल भी कर्ता पर ही पड़े, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
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अकर्मक क्रिया शब्द ' ठनकना' ठन शब्द से बना है जिसका आशय ठन ठन शब्द करना, सनक जाना, रह रह कर दर्द करना या कसक होना है.
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।।।अपूर्ण अकर्मक क्रियाः जिस क्रिया के पूर्ण अर्थ का बोध कराने के लिए कर्ता के अतिरिक्त अन्य संज्ञा या विशेषण की आवश्यकता पड़ती है, उसे अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं।
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यह किसी मुहावरे का वाक्य प्रयोग नहीं है प्रिय न ही किसी वाक्यांश के लिए एक शब्द न ही किसी शब्द का अनुलोम-विलोम कोई सकर्मक-अकर्मक क्रिया भी नहीं।
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हिंदी समय में से. रा. यात्री की रचनाएँ कहानियाँ अकर्मक क्रिया अभयदान अभिभूत अर्थ कामना अवांतर प्रसंग आकाश चारी आखिरी पड़ाव आत्म हंता की डायरी आदमी कहाँ है उखड़े हुए एक युद्ध यह भी कबाड़िए क्षेपक कहानी नहीं...
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वे सकर्मक भूतकालिक क्रिया के कर्ता का तो सविभक्ति पूरबी रूप ' केइ ', ' जेइ ' ' तेइ ' रखते हैं पर अकर्मक क्रिया के कर्ता का ' को, जो, सो ', जैसे-