| 21. | सूक्ष्मदृष्टि अकलंक इस समग्र स्थिति का अध्ययन किया तथा सभी दर्शनों का गहरा एवं सूक्ष्म अभ्यास किया।
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| 22. | किन्तु जैन न्याय में जो सुव्यवस्था और सुदृढ़ता देखी जाती है, उसका श्रेय अकलंक को ही है।
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| 23. | किसी तरह अकलंक की जान तो बच गई, लेकिन निष्कलंक को प्राणदण्ड से मुक्ति न मिल सकी।
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| 24. | आचार्य अकलंक के लघीयस्त्रय और आचार्य विद्यानंद की आप्तपरीक्षा आदि ग्रंन्थों के विपुल प्रमाण इसमें उन्होंने दिए हैं।
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| 25. | न्याय-विनिश्चय ' में अकलंक ने कहा है कि साधन से साध्य के विषय में ज्ञान प्राप्त करना अनुमान है।
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| 26. | अनुमान के कई अवयव माने गये हैं, किन्तु अकलंक ने केवल प्रतिज्ञा और हेतु को ही पर्याप्त माना है।
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| 27. | इसी कारण ' सिद्धेर्वात्राकलंकस्य महतो न्यायवेदिन: [1] वचनों द्वारा अकलंक को ' महान्यायवेत्ता ' जस्टिक-न्यायधीश कहा है।
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| 28. | अकलंक ने भर्तृहरि, कुमारिल, धर्मकीर्ति और उनके अनेक टीकाकारों के मतों की समालोचना करके जैन न्याय को सुप्रतिष्ठित किया है।
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| 29. | इसी से तत्वार्थसूत्र के टीकाकार समन्तभद्र, पूज्यपाद, अकलंक और विद्यानन्द आदि मुनियों ने बड़े ही श्रद्धापूर्ण शब्दों में इनका उल्लेख किया।
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| 30. | युद्ध क्षेत्र में देवी का रौद्र रूप देखते ही बनता था आकाश में सूर्य का अकलंक तेज चारों तरफ भासमान था।
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