फिर भी इससे उनके यात्रा-वृत्तांतों का महत्व कम नहीं हो जाता-अकाल्पनिक गद्य विधाओं में यात्रा-वत्तांतों की विरलता को देखते हुए तो और भी नहीं।
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“जीएनएन न्यूज़” चैनल एक खास, आकर्षक व ताजातरीन फॉरमेट में समाचार, खेल, फिल्म, संगीत, ड्रामा और कॉमेडी आदि पर फोकस करेगा, जिसका लक्ष्य होगा काल्पनिक व अकाल्पनिक मनोरंजन के लिए वन-स्टॉप-शॉप बनना।
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अब यदि कोलकाता से सटे गावों और कस्बों या कहें कि कोलकाता के भीतर हीं ऐसी स्थिति बन गई है तो बांग्लादेशी सीमा से सटे क्षेत्रों में क्या परिस्थिति होगी यह अकाल्पनिक है.
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कविता हो, या कहानी या फिर संस्मरण जैसी अकाल्पनिक गद्य विधा ही हो-तीनों में शमशेर के व्यक्तित्व की निश्छलता, भावप्रवणता, अध्ययनशीलता और सौंदर्य दृष्टि के वैशिष्ट ¬ को साफ-साफ पहचाना जा सकता है।
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लाहिड़ी का दी न्यू यॉर्कर पत्रिका के साथ भी विशिष्ठ सम्बंध था जिसमें उनकी कई लघु कथाएं प्रकाशित हुई, जिनमे से अधिकांश काल्पनिक, और कुछ अकाल्पनिक थी जिसमें शामिल थी दी लौंग वे होम; कुकिंग लेसंस, यह कहानी लाहिड़ी और उनकी मां के बीच के सम्बंध में खाने के महत्व के विषय में थी.
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लाहिड़ी का दी न्यू यॉर्कर पत्रिका के साथ भी विशिष्ठ सम्बंध था जिसमें उनकी कई लघु कथाएं प्रकाशित हुई, जिनमे से अधिकांश काल्पनिक, और कुछ अकाल्पनिक थी जिसमें शामिल थी दी लौंग वे होम; कुकिंग लेसंस, यह कहानी लाहिड़ी और उनकी मां के बीच के सम्बंध में खाने के महत्व के विषय में थी.
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की कितना उपेक्षित ये है बेचारा ऐसे पलटूचन्द कई होगें और सब दलों के दल-दल में फंसे हुए होंगे, उसका भूत पुन: जागृत हो गया और कहने लगा हमारा देश अंतहीन और अकाल्पनिक, समस्याओ से भरपूर है कब क्या घट जाए, कब किसे क्या सपना आ जाये, कौनबेतुका बयान दे दे.
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लाहिड़ी का दी न्यू यॉर्कर पत्रिका के साथ भी विशिष्ठ सम्बंध था जिसमें उनकी कई लघु कथाएं प्रकाशित हुई, जिनमे से अधिकांश काल्पनिक, और कुछ अकाल्पनिक थी जिसमें शामिल थी दी लौंग वे होम ; कुकिंग लेसंस, यह कहानी लाहिड़ी और उनकी मां के बीच के सम्बंध में खाने के महत्व के विषय में थी.
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नॉर्थ पार्क, पंचकुला: शायद आपने इसके बारे में नहीं सुना होगा, और इसका कारण यह है कि इस होटल में अक्सर आनेवाले कुछ लोग इसे एक खासा रहस्य बनाकर रखे ते हैं; शहर के कोलाहल से हटकर एक रमणीय जगह में स्थित, यह होटल शिवालिक श्रृंखला की तराई में अकाल्पनिक रूप से बसा, एक आकर्षक एवं नीरव अवकाश-स्थल है।
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इपंले जब-जब ‘ कहानीकार ' काशीनाथ सिंह के पास जाता है, यह महसूस करता है कि इस कहानीकार का यू. एस. पी. वही है जिसने आगे चलकर उसे विलक्षण संस्मरणकार और अपनी बहुत नज़दीक की दुनिया को बयान करने वाला बेमिसाल ‘ कमेंटेटर ' बना दिया. अब आप इसे ‘ टिलिआलजी ' कह लीजिए, पर इपंले अपनी स्थापना पर बज़िद है कि इस ‘ कहानीकार ' का अंततः अकाल्पनिक गद्यवृत्तों की दिशा में जाना बहुत स्वाभाविक, यहां तक कि नियत था.