पुरे शहर में जाम का बोलबाला, धूल की चादर में लपटी अकुलाई भीड़, सम्हालना देवों के ही वश की बात है.
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दूसरी पेट की आग जिससे तड़पते बच्चों को जिलाने के लिए अकुलाई मां ने दो ईंटें रख कर चूल्हा बनाया और फिर जलाई आग..
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बूढ़े पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की ' बरस बाद सुधि लीन्ही' बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
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छोटे ख़याल सी अल्हड़ चपलाई चंचलताई.... कजरी की अकुलाई तरुणाई... आली मोरे अंगना आज... पिया गुनवंत आवन को हैं... प्रिय के रंग चूनर रंगाई....
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महाकवि तुलसीदास राम से बिछोह का शब्द चित्र रचते हुए हमसे कहते हैं कि राम रूपी जीवन जल के वियोग से अकुलाई हुई प्रजा चित्र लिखी-सी रह गई है।
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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं मालती श्रीवास्तव ने ‘ बढ़ती जनसंख्या, भविष्य के विचार से, अकुलाई धरती जनसंख्या के भार सेÓ इस प्रेरणादायी कविता के माध्यम से जनसंख्या नियंत्रण का संदेश दिया।
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तब मेरी पीड़ा अकुलाई! जग से निंदित और उपेक्षित, होकर अपनों से भी पीड़ित, जब मानव ने कंपित कर से हा! अपनी ही चिता बनाई! तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
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तब मेरी पीड़ा अकुलाई! जग से निंदित और उपेक्षित, होकर अपनों से भी पीड़ित, जब मानव ने कंपित कर से हा! अपनी ही चिता बनाई! तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
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उसी कोमल कंपन में अकुलाई (इठलाई नहीं) बोली-पता नहीं, प्रिये, सब इतना सुखकर है, आह्लादकारी है फिर भी मन में जाने क् या है कि कुछ मुरझाया-मुरझाया सा लगता है..
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दुर्गा-शक्ति-नागपाल अपनी रक्षा करना नामर्दों, आदि-शक्ति अकुलाई है आज किसी मर्दानी ने फिर से तलवार उठाई है जात-धर्म की राजनीत झूटी-टोपी, तेरी छद्म-प्रीत क्षण भर न चलने देगी वो स्त्री-शक्ति है परम जीत …