इस लोक में एक ही हंस है, जो जल में अग्नि के समान अगोचर है इसे जानकर जीव मृत्यु के बन्धन से छूट जाता है और ऎसे परमात्मा का ज्ञान केवल योग्य साधक को ही देना चाहिए
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एक बार जब यह मान लिया गया कि ईश्वर अगम-अगोचर है, उसके विराट एवं विलक्षण रूप की व्याख्या कर पाना सीमित क्षमता वाली मानवीय इंद्रियों की पहुंच से बाहर है, तब उसको जानने का एक ही रास्ता बचता था, वह था प्रेम और समर्पण का, जो आगे चलकर भक्ति आंदोलन का जनक बना.
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भारहीन, अव्यय, अशब्द, अगम्य, अगोचर है | जब वह व्यक्त होता है तो भार व गति उत्पन्न करके अनंत ऊर्जा व अर्यमा (प्रकाश कण) आदि प्रारंभिक कण उत्पन्न करता है जिन्हें भार व गति प्रदान करता है | ये अर्यमा (प्रकाश कण) व अन्यकण व ऊर्जा संयुक्त होकर आगे परमाणु-पूर्व कण.... फिर इलेक्ट्रोन, न्यूट्रोन, प्रोटोन-परमाणु... अणु आदि..... विस्तार से..