YK: फिल्मी गीतों के बारे में लिखना, हिन्दी साहित्य में और हिन्दी पत्रकारिता में, दोयम दर्जे का माना जाता है, फ़िल्म पत्रकारिता को भी बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता रहा है, जैसा कि आपने कहा ' सिनेमा देखना ही हमारे यहाँ अच्छी बात नहीं थी '.
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उसकी भावनाओं पर कुछ देर मनन करने के बाद अपनी आवाज का वॉलूम, धीरे से तेज करते हुए वह बोला-“अनुशा ऎसा हो तो सकता है, पर ऎसे रिश्तों को समाज तथा कानून निगेटिव मानकर, न तो मान्यता देता है न अच्छी दृष्टि से देखता है.यह स्टेप-कॉन्सेप्ट हमारे देश में ही नहीं विदेशों में भी है.