इन अड़हुल के पौधों के ठीक सामने पश्चिम ओर थोड़ी ही दूर पर एक बहुत ही ऊँची अटारी है।
22.
माधव तेरे श्री चरणों में जो जैसा है, वैसा अर्पित आर्द्र अरुण अड़हुल का आंचल, नाद शंख सागर में गुंजित
23.
धूप-दीप, अड़हुल के फूल, सामने सजा हुआ ‘चक्र', चक्र के चारों ओर बैठी हुई पीली-पीली गर्भवतियां. भक्तमंडली झांझ-मृदंग बजा कर गाती, ‘पहले बंदनियां बंदौ तोहरी चरनवां हे! कोसी मैया!'
24.
फूल सुंघनी क्या गा गई सुर्ख अड़हुल के कान में कि मुंह खोले है अवाक समुद्र के पास क्या कोई मृदंग है जो शाम ढलते ही देने लगता है ताल पेड़ों के पास तो पत्तों की करतल धुने हैं
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धूप-दीप, अड़हुल के फूल, सामने सजा हुआ ‘ चक्र ', चक्र के चारों ओर बैठी हुई पीली-पीली गर्भवतियां. भक्तमंडली झांझ-मृदंग बजा कर गाती, ‘ पहले बंदनियां बंदौ तोहरी चरनवां हे! कोसी मैया! '
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उड़ीसा में “ मंदार ” नाम “ अड़हुल ” केलिए प्रयुक्त देख मुझे मदार और मंदार एक ही लगता था और जिसे आपने चित्र में “ मदार ” नाम से संबोधित किया है, उसे “ आक ” (जिससे शिव की पूजा होती है) के नाम से जानती थी..
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अड़हुल तो फूल होता है लेकिन अँड़ुहर तेली से कोई अगर यह पूछ देता कि अड़हुल के फुलवा क गो पतवा (अड़हुल के फूल में कितनी पंखुड़ियाँ?) तो पंखुड़ियों की संख्या बताने के बजाय अँड़ुहर तेली उसके सात पुश्तों तक की बूढ़ी, जवान, बच्ची सबसे अपना नाता जोड़ने में लग जाता।
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अड़हुल तो फूल होता है लेकिन अँड़ुहर तेली से कोई अगर यह पूछ देता कि अड़हुल के फुलवा क गो पतवा (अड़हुल के फूल में कितनी पंखुड़ियाँ?) तो पंखुड़ियों की संख्या बताने के बजाय अँड़ुहर तेली उसके सात पुश्तों तक की बूढ़ी, जवान, बच्ची सबसे अपना नाता जोड़ने में लग जाता।
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अड़हुल तो फूल होता है लेकिन अँड़ुहर तेली से कोई अगर यह पूछ देता कि अड़हुल के फुलवा क गो पतवा (अड़हुल के फूल में कितनी पंखुड़ियाँ?) तो पंखुड़ियों की संख्या बताने के बजाय अँड़ुहर तेली उसके सात पुश्तों तक की बूढ़ी, जवान, बच्ची सबसे अपना नाता जोड़ने में लग जाता।
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पिता, फॉरेस्ट विभाग में रेंजर थे, रांची में | अकूत काला धन से दरभंगा का घर चमका रखा था | पायदान तक पर सफ़ेद मार्बल लगा रखा था, झक्क सफ़ेद, दूधिया और अहाते में कई तरह के फूल-अड़हुल, कनेर, गुलाब और एक जो छोटा-छोटा फूल होता है उजला-उजला, डंठल नारंगी, सुंगंधित, सुबह-सुबह जमीन पर ढेर बिखडा रहता है, वो भी था |