... यह नाटक तो अतिकथन और बोझिल संवादात्मकता से भी मुक्त है जो आरोप प्राय: हिन्दी नाटकों पर लगाया जाता है।
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अनावश्यक विवरण, लाउड हो गए, अतिकथन कर डाला, बाज़ारवादी हो गए, किस्म की बातें हिंदी आलोचना के भी प्यारे इतान्यातान्योफेरास हैं।
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हाँ यह सच है की अंत कविता में अतिकथन सा हुआ लग रहा है पर एक सच यह भी है जिसे नजरंदाज नही किया जा सकता.
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अतिकथन से बचते हुए किफ़ायत से भाषा का इस्तेमाल करने की सलाह देने वाले विज्ञापन फ़िल्मों के कॉपीराइटर छाप अर्धकवि-अर्धलेखकों और हिंदी साहित्य के सुर-सुरा-सुंदरी आशिक आलोचकों को इरिटेट करने वाली बडबडाहट।
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कोई नहीं मानेगा क्योंकि यह बहुत अविश्वसनीय समय है, जिसमें सच पर विश्वास नहीं किया जाता, क्योंकि वह बहुत पकाऊ, लंबा, पेचीदा और अतिकथन वाले अतियथार्थ से भरा होता है।
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मुझे लगता है कि हम सभी को लम्बी कविताओं के संदर्भ में अतिकथन के इस फर्क को जानना चाहिये और कोशिश करनी चाहिये कि कविता लम्बी भले हो पर शब्दों का अतिरिक्त बोझ उस पर न हो।
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इससे आगे बढ़कर यह भी कहा जा सकता है, और ऐसा कहना उनके उपन्यासों का विश्लेषण करने पर अतिकथन नहीं लगेगा, कि उनका ' आदर्शोन्मुख यथार्थवाद ' वस्तुत: ' आलोचनात्मक यथार्थवाद ' की धारणा के अधिक निकट है ।
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१. विष्णु जी इस आलेख के माध्यम से जो प्रकाशकों की चालबाज़ियों पर अपनी बात कहना चाहते थे वह आवेश, अतिकथन, आक्रमकता, फुलझडियों छोडने और अपने ही लेखक साथियों के प्रति अविश्वास के चलते दिशाभ्रम का शिकार हो गया ।