खानों में छेद करके संकेंद्रित नलीवाली पाइप बैठाई जाती है बाहर से अतितप्त जल प्रवाहित करने से गंधक पिघलकर गड्ढे में इकट्ठा होता है, जहाँ से संपीड़ित वायु के सहारे बीच की नली से पिघला गंधक बाहर निकालकर, लकड़ी के साँचों में डालकर, बत्ती के रूप में प्राप्त किया जाता है।
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खानों में छेद करके संकेंद्रित नलीवाली पाइप बैठाई जाती है बाहर से अतितप्त जल प्रवाहित करने से गंधक पिघलकर गड्ढे में इकट्ठा होता है, जहाँ से संपीड़ित वायु के सहारे बीच की नली से पिघला गंधक बाहर निकालकर, लकड़ी के साँचों में डालकर, बत्ती के रूप में प्राप्त किया जाता है।
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फिलामेंट बनने के लिए उच्च गलनांक वाली धातु की आवश्यकता होती है | यदि कम गलनांक वाली धातु का प्रयोग कर लिया जाए तो वो पिंघल जाएगी टंग्स्टन Tungsten धातु का प्रयोग किया जाता है, जिसका गलनांक 3140 डीग्री सेंटीग्रेट होता है और जबकि फिलामेंट को चमकने के लिए 2700 डीग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है | फिलामेन्ट को काँच के बल्ब के अन्दर इसलिये रखा जाता है ताकि अतितप्त फिलामेन्ट तक वायुमण्डलीय आक्सीजन न पहुँच पाये और इस तरह क्रिया करके फिलामेन्ट को जला ना सके।