ज्योतिष का एक जिज्ञासु विद्यार्थी होने के नाते कहना चाहूँगा कि सभी को अपनी दिनचर्या में साधारण पूजन कार्य और मंदिर जाने को अवश्य शामिल करना चाहिए क्योंकि ये आदत पता नहीं कितने ही अदृढ़ कर्मों से जाने-अनजाने में छुटकारा दिला देती है।
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1. दृढ़ प्रारब्ध (अर्थात् कभी न बदलने वाला प्रारब्ध) 2. अदृढ़ प्रारब्ध (अर्थात् बदले जा सकने वाला प्रारब्ध) 3. दृढ़ादृढ़ प्रारब्ध (अर्थात् आधा बदले जाने वाला व आधा नहीं बदले जाने वाला प्रारब्ध) इन्हीं सब में दृढ़ादृढ़ प्रारब्ध की प्रधानता है।