यही चाह्ती हूँ कि गन्ध को तन हो, उसे धरु मै, उड़ते हुए अदेह स्वप्न को बाहॉ मॅ जकड़ू मै, निराकार मन की उमंग को रुप कही दे पाऊँ, फूटे तन की आग और मै उसमॅ तैर नहाऊँ.
22.
औद्योगिक विकास शून्य में नहीं होता और सकल उत्पाद में श्रम निर्गुण या अदेह रूप में संचित नहीं होता बल्कि अन्न, जल और अनगिनत जैविक पदार्थो के परिवर्तन और परिवर्धन से उपयोग की वस्तुओं के अंसख्य रूपों में संचित होता है।
23.
और करूँगी क्या कहकर मैं शमित कुतुहल को भी? मैं अदेह कल्पना, मुझे तुम देह मान बैठे हो ; मैं अदृश्य, तुम दृश्य देख कर मुझको समझ रहे हो सागर की आत्मजा, मानसिक तनया नारायण की.
24.
औद्योगिक विकास शून्य में नहीं होता और सकल उत्पाद में श्रम निर्गुण या अदेह रूप में संचित नहीं होता बल्कि अन्न, जल और अनगिनत जैविक पदार्थो के परिवर्तन और परिवर्धन से उपयोग की वस्तुओं के अंसख्य रूपों में संचित होता है।
25.
दिव्य महारास के उस भोरहरे में देह-मुक्ति का वह समूह-गान मूर्छना की गति पकड़ कर थिरक रही थीं देह से अदेह होती हुयी अनेक पारदर्शी आकृतियाँ मायापुर की मायाविनी बरसात में उड़ रहे थे अनेक देह-वस्त्र आकाश में मुक्त होकर देह-तृष्णाओं से |
26.
अभी नींद-उनींद में था गौरांग महाप्रभु का गाँव था सामने था और रोशनियों में जगमग कृष्ण-चैतन्य का मंदिर मूर्छित भोरहरे के महा-रास में मूर्छना में महाप्रभु के भक्तजन मूर्छना में महाचेतना देह तजती देहाकृतियाँ देह से अदेह होती नदी भी बेसुध अभी तक,
27.
चलो चलते-चलते एक गीत हो जाए अदेह के सदेह प्रश्न कौन गढ़ रहा कहो? कौन गढ़ कहो? बाग़ में बहार में सावनी फुहार में पिरो गया किमाच कौन? मोगरे हार में? और दोष मेरे सर कौन मढ़ गया कहो..
28.
उनींदी शाखाओं के तले चमक रही है एक अजानी रोशनी वन प्रांतर के जादुई पथ पर न कहीं से आती न कहीं को जाती हुई उड़ गई है मेरी परछाईं मैं हूँ अब अदेह और चाँदनी में घुलनशील मेरी नींद अटकी हुई है बीच हवा में और मेरे हाथ छू रहे हैं शून्य।
29.
सिद्धेश्वर सिंह) उनींदी शाखाओं के तले चमक रही है एक अजानी रोशनी वन प्रांतर के जादुई पथ पर न कहीं से आती न कहीं को जाती हुई उड़ गई है मेरी परछाईं मैं हूँ अब अदेह और चाँदनी में घुलनशील मेरी नींद अटकी हुई है बीच हवा में और मेरे हाथ छू रहे हैं शून्य।
30.
अदेह के सदेह प्रश्न कौन गढ़ रहा कहोगढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो? मुझे जिस्म मत कहो चुप रहो मैं भाव हूँतुम जो हो सूर्य तो रश्मि हूँ प्रभाव हूँ!!मुझे सदा रति कहो? लिखा है किस किताब में देह पे ही हो बहस कहा है किस जवाब में नारी बस देह..? नहीं...