जिनको ब्रह्मज्ञानी महापुरुष का सत्संग और अध्यात्मविद्या का लाभ मिल जाता है उसके जीवन से दुःख विदा होने लगते हैं | ॐ आनन्द!
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मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या अर्थात् ब्रह्मविद्या और परस्पर विवाद करने वालों का तत्व-निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ॥32॥ अक्षराणामकारोऽस्मि द्वंद्वः सामासिकस्य च ।
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न्यायभाष्यकर ने स्पष्ट कहा है कि उपनिषद आदि अध्यात्मविद्या से इसमें पार्थक्य दिखाने के लिए उन संशय आदि चौदह पदार्थों का प्रतिपादन भी यहाँ आवश्यक है।
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मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या अर्थात् ब्रह्मविद्या और परस्पर विवाद करने वालों का तत्व-निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ॥ 32 ॥ अक्षराणामकारोऽस्मि द्वंद्वः सामासिकस्य च ।
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साहित्य एवं संगीत की विशाल सामग्री तो इसके पास है ही अध्यात्मविद्या जो वस्तुतः जीवनविद्या है उस क्षेत्र में भारतीय संस्कृति के पास अमूल्य, विशाल एवं व्यापक सामग्री है।
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उनके कुलगुरू योग नगाई जाप्ता ने कुछ समय पूर्व अध्यात्मविद्या के आधार पर यह बताया था कि-उत्तर भारत से एक महायोगी आयेगा, रंगस्वामी उसी से साधना संबंधी उपदेश ग्रहण करें।
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न्यायवार्त्तिक में आचार्य उद्योतकर ने भी इसकी पुष्टि में कहा है कि न्याय दर्शन में यदि संशय आदि चौदह पदार्थों का विवेचन नहीं होता तो यह चतुर्थी विद्या नहीं कहलाती, बल्कि त्रयी के अन्तर्गत अध्यात्मविद्या के रूप में प्रतिष्ठित होती।
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हां, उसमें एक अनुमान सहज ही हो सकता है कि चूंकि देश में यज्ञों के प्रति उत्साह लगातार क्षीण हो रहा था और अध्यात्मविद्या का प्रभाव लगातर फैल रहा था इसलिए जहां ब्राह्मणों और आरण्यकों की रचना पांच-सात सौ सालों में हो चुकी होगी वहां उपनिषदों की रचना लगातार करीब एक हजार साल तक चलती रही होगी।
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अध्यात्मविद्या का एक अंग, जिसे यहाँ हम योग कह रहे हैं, उस पर अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार से विचार किया है. क्योंकि व्यावहारिक तथा भौतिक दृष्टि से भी योग की उपयोगिता है. इसलिए पश्चिम के आधुनिक विद्वान आज भी उस पर गवेषणा कर रहे हैं. भारतीय योग दर्शन के आचार्य पतंजलि का कथन है कि `चित्तवृत्तियों का निरोध ही योग है '(योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः).
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उनकी इस वास्तविकता को खण्डित नहीं किया जा सकता है. इन दोनों दर्शनों के परवर्ती ग्रन्थ-~ कारों ने अपनी कृतियों के लिए एक-दूसरे के भावों को ग्रहण करके तथा एक साथ ही दोनों दर्शनों के विचार ग्रथित दोनों दर्शनों के सम्बन्ध को अधिक स्पष्ट कर दिया है. चित्तवृत्तियों के निरोध का उद्देश्यविश्व के प्रायः समस्त देशों के साहित्य में अध्यात्मविद्या का विशेष महत्त्व माना गया है.