यदि स्वत्व का वाद बिन्दु निर्णीत किये बिना व्यादेश अनुदत्त नहीं किया जा सकता है तो न्यायालय वादी को सक्षम न्यायालय में स्वत्व के सम्बन्ध में उद्घोषणा प्राप्त करने हेतु निर्देशित करेगी और ऐसे मामले में सिम्पलीसिटर व्यादेश का वाद पोषणीय नहीं होगा।
22.
जैसा कि उपरोक्त वाद बिन्दुओं से साबित हो चुका है कि मौके पर वादी का कोई कब्जा दखल, स्वामित्व नहीं है ऐसी दशा में वादी के पक्ष में शाश्वत व्यादेश अनुदत्त दिया नहीं जा सकता तथा प्रश्नगत मामले में वादी का कोई वैयक्तिक हित नहीं है तदनुसार यह वाद बिन्दु प्रतिवादी के पक्ष में सकारात्मक रूप से निर्णीत किया जाता है।
23.
धारा 27 अधिकारिता-सीमाओं के भीतर, जहॉ-(क) व्यथित व्यक्ति स्थायी रूप से या अस्थायी रूप से निवास करता है या कारबार करता है या नियोजित है, या (ख) प्रत्यर्थी निवास करता है या कारबार करता है या नियोजित है, या (ग) हेतुक उद्भूत होता है, इस अधिनियम के अधीन कोई संरक्षण आदेष और अन्य आदेष अनुदत्त करने और इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने के लिये सक्षम न्यायालय होगा।
24.
परिपत्र में बताया गया है कि योजना के अधिनियम की धारा-27 (2) के अनुसार-उपधारा (1) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना केन्द्रीय सरकार, किसी योजना (स्कीम) के संबंध में इस अधिनियम के अनुदत्त निधियों को जारी करने या अनुचित उपयोग के संबंध में किसी शिकायत की प्राप्ति पर, यदि प्रथम दृष्टया यह समाधान हो जाता है कि कोई मामला बनता है तो उसके द्वारा पदाभिहित किसी अभिकरण द्वारा की गई शिकायत की जांच करा सकेगी।
25.
धारा 27 अधिकारिता-सीमाओं के भीतर, जहॉ-(क) व्यथित व्यक्ति स्थायी रूप से या अस्थायी रूप से निवास करता है या कारबार करता है या नियोजित है, या (ख) प्रत्यर्थी निवास करता है या कारबार करता है या नियोजित है, या (ग) हेतुक उद्भूत होता है, (1) यथास्थिति, प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट का न्यायालय, जिसकी स्थानीय इस अधिनियम के अधीन कोई संरक्षण आदेष और अन्य आदेष अनुदत्त करने और इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने के लिये सक्षम न्यायालय होगा।
26.
अधिनियम, 2005 की धारा 27 के अनुसार प्रथम वर्ग का न्यायिक मजिस्ट्रेट का वह न्यायालय ही कोई संरक्षण आदेष और अन्य आदेष अनुदत्त करने के लिये सक्षम न्यायालय है जिसकी स्थानीय सीमा के भीतर व्यथित व्यक्ति निवास करता है अथवा प्रत्यर्थी निवास या कारोबार करता है या नियोजित है अथवा हेतुक उद्भूत होता है परन्तु धारा 27 मे यह कहीं मना नही है कि ऐसे न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय को अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत मामला अन्तरित नही किया जा सकता है यद्यपि अनुदत्त करने के लिये सक्षम है।
27.
अधिनियम, 2005 की धारा 27 के अनुसार प्रथम वर्ग का न्यायिक मजिस्ट्रेट का वह न्यायालय ही कोई संरक्षण आदेष और अन्य आदेष अनुदत्त करने के लिये सक्षम न्यायालय है जिसकी स्थानीय सीमा के भीतर व्यथित व्यक्ति निवास करता है अथवा प्रत्यर्थी निवास या कारोबार करता है या नियोजित है अथवा हेतुक उद्भूत होता है परन्तु धारा 27 मे यह कहीं मना नही है कि ऐसे न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय को अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत मामला अन्तरित नही किया जा सकता है यद्यपि अनुदत्त करने के लिये सक्षम है।
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अधिनियम, 2005 की धारा 27 के अनुसार प्रथम वर्ग का न्यायिक मजिस्ट्रेट का वह न्यायालय ही कोई संरक्षण आदेष और अन्य आदेष अनुदत्त करने के लिये सक्षम न्यायालय है जिसकी स्थानीय सीमा के भीतर व्यथित व्यक्ति निवास करता है अथवा कारोबार करता है या नियोजित है अथवा प्रत्यर्थी निवास करती है या कारोबार करती है या नियोजित है अथवा हेतुक उद्भूत होता है अन्य आदेष मे अधिनियम, 2005 की धारा 19 के अन्तर्गत निवास आदेष, धारा 21 के अन्तर्गत अभिरक्षा आदेष एवं धारा 22 के अन्तर्गत प्रतिकर आदेष षामिल है।