फिल्म की कहानी में गांव के जमींदार ब्राम्हण समाज के शिव प्रसाद पाठक (रमाकांत बख्शी) और एक छोटे किसान सतनामी समाज के चरणदास (विष्णुदत्त वर्मा) के बीच जमीन विवाद के मुकदमे को लेकर हुए तनाव को भी दर्शाया गया है, जिसमें अन्यायपूर्ण ढंग से जमींदार की जीत होने पर चरणदास आवेश में आकर फरसा लेकर उनकी हत्या करने के इरादे से घर से निकल जाता है।
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एक अध्यापक अपने छात्र के चरित्र के बारे में भली-भांति जानने के कारण उसके बारे में यह बताता है, ‘ मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि वह असंयत हो जाएगा, बहुत-सी बेकार की बाते करेगा, शायद अशिष्ट और अन्यायपूर्ण ढंग से पेश आएगा, पर फिर अपने आचरण-व्यवहार पर उसे खेद होगा, प्रायश्चित की मुद्रा धारण किए हुए इधर-उधर चक्कर काटता रहेगा और अंततः अपने अपराध का निवारण करने के लिए यथासंभव सब कुछ करेगा।