पुरुरवा महाश्चर्य! अघट घटना! अद्भुत अपूर्व लीला है! यह सब सत्य-यथार्थ या कि फिर सपना देख रहा हूँ? पुत्र! देवि! मैं पुत्रवान हूँ? यह अपत्य मेरा है? जनम चुका है मेरा भी त्राता पुं नाम नरक से? अकस्मात हो उथा उदित यह संचित पुण्य कहाँ का?
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नारायण नागबली प्रमुख रूपसे तब करना चाहिए जब अपत्य हिनता, कष्टमय जीवन और दारिद्रय, शरीर के न छुटनेवाले विकार भुतप्रेत, पिशाच्च बाधा, अपमृत्यू, अपघातों का सिलसिला साथही में पूर्वजन्म में मिले शाप, पितृशाप, प्रेतशाप, मातृशाप, भातृशाप, पत्निशाप, मातुलशाप, आदी संकट मनुष्य के सामने निश्चित रूपसे खडे हो।
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एक मंत्र का अनुवाद यहां दिया जा रहा है-‘ वनिष्ठु से पूषा देवता को, स्थूल गुद से आंध्र सर्पों को, आंत से विह्रुत को, वस्ति से जल को, अण्ड से वृषण को, मेढ से वाजी को, वीर्य से अपत्य को पित्त से चाष देवता को, तृतीय भाग से प्रदरों को और शाकपिण्ड से कूष्मों को प्रसन्न करता हूं।