इसी प्रकार, इससे सुखोमाजरी गाँव से संबंधित झील के आस-पास के, बुरी तरह क्षतिग्रस्त 85 हेक्टेयर के बड़े अपवाह क्षेत्र का पता चला, जो कि सुखना झील के अवसादी करण के लिए विषेषतया:
22.
शुष्कता विसंगति सूचिकांक-जलवैज्ञानिक सूखा: किसी नदी बेसिन या अपवाह क्षेत्र में होने वाली वर्षण अवधि में कमी से उत्पन्न सतही या अधो-सतही जल के आपूर्ति में अंतर जलवैज्ञानिक सूखे को परिभाषित करता है।
23.
सिंचाई के लिए उपलब्ध जल की मौजूदगी के कारण, खाद्यान्न उत्पादन में अनेकानेक रूपों में वृध्दि द्वारा लाभ के प्रत्यक्ष प्रभाव से, सुखोमाजरी के लोगों ने पहाड़ी अपवाह क्षेत्र की वनस्पति की सुरक्षा के मूल्य को समझा।
24.
तत्कालीन प्रभारी अधिकारी री पी आर मिश्रा के नेतृत्व में अनुसंधरन केन्द्र द्वारा प्रारंभिक सर्वेक्षण किया गया, जिससे पता चला कि लगभग छब्बीस प्रतिषत अवसाद का मुख्य स्त्रोत नजदीक बसे हुए सुखोमाजरी तथा कुछ और गाँवों का अपवाह क्षेत्र था।
25.
तथापि, विसाद को स्वैस्थानिक रूप से रोकने के लिए किए गए ये उपाय, सुखोमाजरी के लोगों के स्वैच्छिक सहयोग के बगेर सींाव नहीं हो सके, जो कि अपने जीवन निर्वाह के लिए अपवाह क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों पर ही आश्रित थे।
26.
रबी तथा खरीफ फसलों के लिए कुल विभव वाष्पीकरण-उत्स्वेदन के आधार पर सूचिकांक की गणना इस प्रकार की जाती है:-शुष्कता विसंगति सूचिकांक किसी नदी बेसिन या अपवाह क्षेत्र में होने वाली वर्षण अवधि में कमी से उत्पन्न सतही या अधो-सतही जल के आपूर्ति में अंतर जलवैज्ञानिक सूखे को परिभाषित करता है।
27.
नर्मदा तट पर बसे गांव, छोटे-बड़े शहरों, छोटे-बड़े औद्योगिक उपक्रमों और रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग से की जाने वाली खेती के कारण उद्गम से सागर विलय तक नर्मदा प्रदूषित हो गई है और नर्मदा तट पर तथा नदी की अपवाह क्षेत्र में वनों की कमी के कारण आज नर्मदा में जल स्तर भी 20 वर्ष पहले की तुलना में घट गया है।
28.
नर्मदा तट पर बसे गांव, छोटे-बड़े शहरों, छोटे-बड़े औद्योगिक उपक्रमों और रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग से की जाने वाली खेती के कारण उदगम से सागर विलय तक नर्मदा प्रदूषित हो गई है और नर्मदा तट पर तथा नदी की अपवाह क्षेत्र में वनों की कमी के कारण आज नर्मदा में जल स्तर भी 20 वर्ष पहले की तुलना में घट गया है.
29.
नर्मदा तट पर बसे गांव, छोटे-बड़े शहरों, छोटे-बड़े औद्योगिक उपक्रमों और रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग से की जाने वाली खेती के कारण उदगम से सागर विलय तक नर्मदा प्रदूषित हो गई है और नर्मदा तट पर तथा नदी की अपवाह क्षेत्र में वनों की कमी के कारण आज नर्मदा में जल स्तर भी 20 वर्ष पहले की तुलना में घट गया है.
30.
ये मुख्य रूप से तीन प्रयोजनों की रक्षा करते है प्रथम, तात्कालिक प्रभाव से कृषि भूखंडों मे नालियों की संरचना न बनने देना व उसके द्वारा मृद्वा क्षय से उत्पन्न अवसादीकरण को प्रभावी रूप् से रोकना, दूसरे अपवाह क्षेत्र से प्रवाहित अतिरिक्त वर्षाजी को संचित करना, जिसका कि मानसू समाप्त होने के बाद सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सके एवं तीसरे अपवाह क्षेत्र को पुनर्स्थापित करना।