प्रदेश के अधिकांश भौगोलिक क्षेत्र को प्रकृति ने उत्तम किस्म की उपजाऊ काली मिट्टी, पर्याप्त वर्षा व भूमि की निचली सतह में बेसाल्ट चट्टानों के काले पत्थर की कड़ी अपारगम्य परत प्रदान की है।
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या अन्य कोई उसी गुण की शिलाएँ स्थित हों, तो आंतभैंम जल रंध्री शैल में रिसता हुआ, अपारगम्य शिला के ऊपरी संस्पर्श तल तक पहुँचने के बाद, स्तरों की ढाल के अनुसार पाश्र्ववर्ती दिशा में बढ़ने लगेगा।
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यदि किसी भ्रंश के कारण काई अपारगम्य शैल विस्थापित होकर रंध्री और पारगम्य शैल के सान्निध्य में अवस्थित हो जाय तो उस स्थान पर जहाँ भ्रंशतल किसी प्राकृतिक काट (नाला, इत्यादि) के अनुप्रस्थ अनाच्छादित होगा, वहाँ सोते फूटने लगेंगे।
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यदि किसी भ्रंश के कारण काई अपारगम्य शैल विस्थापित होकर रंध्री और पारगम्य शैल के सान्निध्य में अवस्थित हो जाय तो उस स्थान पर जहाँ भ्रंशतल किसी प्राकृतिक काट (नाला, इत्यादि) के अनुप्रस्थ अनाच्छादित होगा, वहाँ सोते फूटने लगेंगे।
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दूसरे प्रकार के तालाब जो जल संग्रहण के लिए बनाये जाते हैं ऐसे तालाबों की तलहटी में काली चिकनी मिट्टी की अपारगम्य परत होती है जिसके कारण पानी के निचली सतहों से रिसकर जाने की संभावना कम रहती है।
26.
यदि कोई बालूपत्थर का रंध्री शैल, र, इस प्रकार विन्यस्त हो कि उसके ऊपर और नीचे पूर्णतया अथवा प्राय: अपारगम्य शैल, मृत्तिका, शेल (shale) या अन्य कोई उसी गुण की शिलाएँ स्थित हों, तो आंतभैंम जल रंध्री शैल में रिसता हुआ, अपारगम्य शिला के ऊपरी संस्पर्श तल तक पहुँचने के बाद, स्तरों की ढाल के अनुसार पाश्र्ववर्ती दिशा में बढ़ने लगेगा।
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यदि कोई बालूपत्थर का रंध्री शैल, र, इस प्रकार विन्यस्त हो कि उसके ऊपर और नीचे पूर्णतया अथवा प्राय: अपारगम्य शैल, मृत्तिका, शेल (shale) या अन्य कोई उसी गुण की शिलाएँ स्थित हों, तो आंतभैंम जल रंध्री शैल में रिसता हुआ, अपारगम्य शिला के ऊपरी संस्पर्श तल तक पहुँचने के बाद, स्तरों की ढाल के अनुसार पाश्र्ववर्ती दिशा में बढ़ने लगेगा।
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(1) आंतभौंम जल एक ऐसे रंध्रमय और अप्रवेश्य शैल के अंदर संचित हो जिसके ऊपर और नीचे दोनों ओर अपारगम्य शैल अवस्थित हों, (2) स्तरों के प्रवण की दिशा में जल के बहकर निकल जाने का मार्ग अवरूद्ध हो और (3) जल का मूल स्रोतस्थान, कुँआ बनाने के स्थान से इतनी ऊँचाई पर हो कि वांछनीय तरल स्थैतिक दाब उत्पन्न हो, जिसके प्रभाव से कुआँ बनने पर जल स्वत: धरातल तक ऊपर उठ जाय।
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(1) आंतभौंम जल एक ऐसे रंध्रमय और अप्रवेश्य शैल के अंदर संचित हो जिसके ऊपर और नीचे दोनों ओर अपारगम्य शैल अवस्थित हों, (2) स्तरों के प्रवण की दिशा में जल के बहकर निकल जाने का मार्ग अवरूद्ध हो और (3) जल का मूल स्रोतस्थान, कुँआ बनाने के स्थान से इतनी ऊँचाई पर हो कि वांछनीय तरल स्थैतिक दाब उत्पन्न हो, जिसके प्रभाव से कुआँ बनने पर जल स्वत: धरातल तक ऊपर उठ जाय।