दुष्यंत कुमार का ये शेर “ कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता / एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो ” भले ही सटीक और अनंत काल तक के लिये सामयिक हो बाहरी दुनिया के वास्ते, लेकिन यहाँ इस अभासी दुनिया में अपने विरोध स्वरुप ये अलविदा रुपी पत्थर कितनी भी तबीयत से कोई उछालते रहे...